इस वजह से श्री कृष्णा ने लिया था छल का सहारा
इस वजह से श्री कृष्णा ने लिया था छल का सहारा
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भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम प्रिय माना जाता है वहीं उन्ही का अवतार कृष्ण अवतार पूर्णावतार था. आप सभी जानते ही हैं कि श्रीकृष्ण संपूर्ण कलाओं में दक्ष थे, लेकिन आज हम आपको जो बताने जा रहे हैं उसे जानने के बाद आपको हैरानी होगी. जी दरअसल भगवान राम का काल त्रेतायुग का अंतिम चरण था और कहा जाता है कि सतयुग में लोग पूर्णरूप से सच्चे, धर्मयुक्त और सदाचारी थी. वहीं इस युग में पाप की मात्र 0% और पुण्य की मात्रा 100% थी और धर्म के चारों पैर थे. कहते हैं त्रैतायुग में धर्म के तीन पैर थे और इस युग में पाप की मात्रा 25% और पुण्य की मात्रा 75% थी. वहीं द्वापर में धर्म के दो पैर ही रहे और इस युग में पाप की मात्रा 50% और पुण्य की मात्रा 50% थी.

आपको पता ही होगा राम के काल में पापी लोग भी पुण्यात्मा थे, जैसे रावण को पापी माना जाता था लेकिन वह पुण्यात्मा था. वह शिवभक्त था और उसने सीता का हरण करने के बाद भी सीता की इच्छा के बगैर उनसे विवाह नहीं किया और न ही कोई जोरजबरदस्ती की. रावण जैसे खलनायक के परिवार में भी विभीषण जैसे संत हुआ करते थे. वहीं बालि एक दुष्ट वानर था लेकिन उसमें भी धर्म की समझ थी और उसकी पत्नी तारा और पुत्र अंगद ने धर्म का साथ दिया. उस समय में कोई किसी से छल के बारे में नहीं सोच सकता था लेकिन श्रीकष्ण के काल में पापी लोग पानी ही थे और पापी होने के साथ वे क्रूर भी थे. कहा जाता है उनसे धर्मसम्मत कर्म करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था और उस समय में निहत्‍थे अभिमन्यु को कई लोग मिलकर क्रूरता से मार रहे थे. इसी के साथ कौरवों ने छल से पांडवों को वनवास भिजवा दिया और वारणावत में छल से मारने का काम किया था. इसी के साथ भरी सभा में द्रौपदी को निर्वस्त्र किया जा रहा था तो भीष्म भी चुप बैठे थे.

कई लोगों का सवाल होता है कि राम ने कभी छल नहीं किया लेकिन कृष्णा ने क्यों. तो जवाब यह है कि श्रीकृष्ण ने अपने काल और परिस्थिति के अनुसार निर्णय लिया और उन्होंने आचार्य द्रोण का वध, दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार, दुःशासन की छाती को चीरना, जयद्रथ के साथ हुआ छल, निहत्थे कर्ण का वध काने और इस सबसे पहले क्रूर जरासंध का वध करना सभी कुछ उचित ही था. कहा जाता है जब शकुनी, जयद्रथ, जरासंध, दुर्योधन, दु:शासन जैसी क्रूर और अनैतिक शक्तियां सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हो, तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है. वहीं उस समय महत्वपूर्ण होती है विजय, केवल विजय. वह तो द्वापर युग था लेकिन यह कलियुग चल रहा है इस कारण से सावधान रहें.

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