कौन थे 'रणछोड़दास रबारी', जिनका 'भुज' फिल्म में संजय दत्त ने निभाया किरदार
कौन थे 'रणछोड़दास रबारी', जिनका 'भुज' फिल्म में संजय दत्त ने निभाया किरदार
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बॉलीवुड जगत में अभी कई फ़िल्में रिलीज होने वाली है उनमे से एक अभिनेता अजय देवगन की फ़िल्म आगामी 'भुज' है, जिसमे संजय दत्त एक रोल निभा रहे हैं, जिसका नाम है रणछोड़दास रबारी उर्फ़ पागी का। इनके बारे में कम लोग ही जानते हैं। आज इनके बारे में हम आपको विस्तार से बताते है कि आखिर थे रणछोड़दास रबारी उर्फ़ पागी...  

फोटो में जो बुजुर्ग गडरिया है, हकीकत में ये एक सेना का सबसे बड़ा राजदार था। 2008 फ़ील्ड मार्शल मानेक शॉ वेलिंगटन (तमिलनाडु) हॉस्पिटल में एडमिट थे। गंभीर स्थिति तथार अर्धमूर्छा में वे एक नाम अक्सर लेते थे– “पागी-पागी !” चिकित्सकों ने एक दिन पूछ लिया “सर हू इज़ दिस पागी?” और सैम साहब ने स्वयं ही समझाया… 1971 भारत युद्ध जीत चुका था, जनरल मानेक शॉ ढाका में थे। निर्देश दिया कि पागी को बुलवाओ, डिनर आज उसके साथ करूँगा। हेलिकॉप्टर भेजा गया। हेलिकॉप्टर पर सवार होते वक़्त पागी की एक थैली नीचे रह गई, जिसे उठाने के लिए हेलिकॉप्टर वापस उतारा गया था। अफसरों ने नियम के अनुसार हेलिकॉप्टर में रखने से पहले थैली खोल कर देखी तो हैरान रह गए क्योंकि उसमें दो रोटी, प्याज तथा बेसन का एक पकवान (गाठिया) भर था। डिनर में एक रोटी सैम साहब ने खाई तथा दूसरी पागी ने।

वही उत्तर गुजरात के सुईगांव अंतर्राष्ट्रीय सीमा इलाके की एक बॉर्डर पोस्ट को रणछोड़दास पोस्ट नाम दिया गया। यह प्रथम बार हुआ कि किसी आम शख्स के नाम पर सेना के कोई पद हो साथ ही उनकी प्रतिमा भी लगाई गई। पागी यानी ‘मार्गदर्शक’, वो शख्स जो रेगिस्तान में मार्ग दिखाए। ‘रणछोड़दास रबारी’ को जनरल सैम मानिक शॉ इसी नाम से बुलाते थे। गुजरात के बनासकांठा ज़िले के पाकिस्तान बॉर्डर से सटे गाँव पेथापुर गथड़ों के रणछोडदास थे। भेड़ बकरी एवं ऊँट पालन का काम करते थे। जिंदगी में परिवर्तन तब आया जब उन्हें 58 वर्ष की उम्र में बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला ने उन्हें पुलिस के मार्गदर्शक के तौर पर रख लिया।

क़ाबलियत इतनी कि ऊँट के पैरों के निशान देख कर बता देते थे कि उस पर कितने व्यक्ति सवार हैं। इंसानी पैरों के निशान देख कर वजन से लेकर आयु तक का अनुमान लगा लेते थे। कितने देर पहले का निशान है तथा कितनी दूर तक गया होगा सब एकदम सटीक आंकलन जैसे कोई कम्प्यूटर गणना कर रहा हो। 1965 युद्ध के आरम्भ में पाकिस्तान सेना ने भारत के गुजरात में कच्छ सीमा में मौजूद विधकोट पर कब्ज़ा कर लिया, इस मुठभेड़ में तकरीबन 100 भारतीय जवान शहीद हो गये थे तथा भारतीय सेना के एक 10 हजार जवानों वाली टुकड़ी को तीन दिन में छारकोट पहुँचना आवश्यक था। तब आवश्यकता पड़ी थी पहली बार रणछोडदास पागी की! रेगिस्तानी मार्गों पर अपनी पकड़ की बदौलत उन्होंने सेना को निर्धारित वक़्त से 12 घंटे पहले मंज़िल तक पहुँचा दिया था। सेना के मार्गदर्शन के लिए उन्हें सैम साहब ने स्वयं चुना था तथा सेना में एक खास पद सृजित किया गया था ‘पागी’ यानी पग अथवा पैरों का जानकार।

भारतीय सीमा में छिपे 1200 पाकिस्तानी जवानों की लोकेशन तथा अनुमानित संख्या केवल उनके पदचिह्नों से पता कर भारतीय सेना को बता दी थी, तथा इतना भारतीय सेना के लिए वो मोर्चा फतेह करने के लिए बहुत था। 1971 युद्ध में सेना के मार्गदर्शन के साथ ही अग्रिम मोर्चे तक गोला बारूद पहुँचवाना भी पागी के काम का भाग था। पाकिस्तान के पालीनगर शहर पर जो भारतीय तिरंगा फहरा था उस जीत में पागी का किरदार महत्वपूर्ण था। सैम साब ने खुद 300 रुपये का नक़द पुरस्कार अपनी जेब से दिया था। पागी को तीन सम्मान भी प्राप्त हुए 65 व 71 युद्ध में उनके योगदान के लिए संग्राम पदक, पुलिस पदक व समर सेवा पदक। 27 जून 2008 को सैम मानिक शॉ की मौत हुई तथा 2009 में पागी ने भी सेना से ‘स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति’ ले ली। तब पागी की आयु 108 साल थी। जी हाँ! आपने सही पढ़ा… 108 साल की आयु में ‘स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति’! सन् 2013 में 112 साल की उम्र में पागी का निधन हो गया। अब भी वे गुजराती लोकगीतों का भाग हैं। उनकी शौर्य गाथाएँ युगों तक गाई जाएंगी। अपनी देशभक्ति, वीरता, बहादुरी, त्याग, समर्पण तथा शालीनता की वजह से भारतीय सैन्य इतिहास में हमेशा के लिए रणछोड़दास रबारी मतलब हमारे ‘पागी’ अमर हो गए।

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