तो क्या रावण की पुत्री थी माता सीता, जानिए रहस्य का सच!
तो क्या रावण की पुत्री थी माता सीता, जानिए रहस्य का सच!
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आप सभी को बता दें कि माता सीता के बारे में रामायण के अलावा और भी कई ग्रंथ में उल्लेख मिलता है जिसके बारे में आप सभी ने सुना ही होगा. वहीं एक ग्रंथ के अनुसार मिथिला के महाराज जनक के राज्य में कई सालों से बारिश नहीं हुई थी जिससे चिंतित होकर राजा जनम के ऋषियों से पूछा था और ऋषियों ने बताया की जब आप स्वयं हल चलाएंगे तो ही इंद्रदेव की कृपा हो सकती है. वहीं बिहार में स्थित सीतामढ़ी के पुनौरा गांव में ही राजा जनक ने हल चलाया था और वहां पर उनके हल एक धातु से टकराकर अटक गया. बस उसी वक्त राजा जनक ने वहां पर खुदाई का आदेश किया और वहा से एक कलश निकला जिसके अंदर एक सुंदर कन्या थी. कहते हैं राजा जनक नि:संतान ही थे तो उन्होंने भगवान का आशीर्वाद मानकर उन्हें पुत्री बना लिया.

वहीं हल के फल को सित कहा जाता है और उससे टकराने के कारण कलश से कन्या बाहर आई थी इसिलिये इस कन्या का नाम सीता रख दिया. कहते हैं इस घटना के कारण ही माना जाता है कि राजा जनक की पुत्री माता सीता नहीं थी और कुछ लोग माता सीता को पृथ्वी की पुत्री मानते है क्यूंकि यह धरती के अंदर छुपे कलश से प्राप्त हुई थी. वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि सवाल यह भी उठे हैं कि माता सीता के पिता कौन है और वो कलश में सीता कैसे आई...? जी दरअसल इस बात की जानकारी रामायण और अन्य कथाओं में की गई है. वहीं रामायण में यह बताया गया है की रावण ब्रह्माजी को प्रसन्न करके कई सारे वरदान मांग रहा था जिसमे उन्होंने एक वरदान माँगा की जब में भूलवश अपनी पुत्री से ही प्रणय की इच्छा करू तब वही मेरी मृत्यु का कारण बने, रावण की ऐसी बात से यह ज्ञात होता है की सीता रावण की पुत्री थी.

इसी के साथ रामायण में तो यह भी उल्लेख मिलता है कि'' जब गृत्स्मद नामक ब्राह्मण माता लक्ष्मी को अपनी पुत्री के रूप में पाने की कामना करता था तब वे हररोज एक एक कलश मे कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चारण के साथ दूध की बूंदें डालता रहता था ऐसे में एक दिन ब्राह्मण कहीं बाहर गये थे तब रावण इनकी कुटिया में अचानक आ गया और यहाँ पर मौजूद ऋषियों को मारकर उनका रक्त कलश में भर लिया बाद में यह कलश रावण में मंदोदरी को दे दिया और बताया की यह बेहद ही तीव्र विष है इसको कही पर छुपाकर कर रख दो. मंदोदरी वैसे रावण की उपेक्षा से बेहद ही दुखी हुआ करती थी इसीलिए उसमे मौका देखकर कलश में रखा रक्त पी लिया ताकि उनको रावण से हमेशा के लिए छुटकारा मिल सके, पर ऐसा नहीं हुआ और इसको पीने के कारण मंदोदरी गर्भवती हो गयी और लोक लाज के डर से मंदोदरी ने अपनी पुत्री को कलश में रखकर उसे निर्जन जगह पर रख दिया और माना जाता है की जनक को यही कलश हल चलाते वक्त प्राप्त हुआ था.''

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