जब साधू ने स्वामी विवेकानंद से कहा था इतने महान व्यक्ति होकर भी तुम एक नदी नहीं पार कर सकते....?
जब साधू ने स्वामी विवेकानंद से कहा था इतने महान व्यक्ति होकर भी तुम एक नदी नहीं पार कर सकते....?
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भारत की समृद्धि और उत्थान में महान दार्शनिक स्‍वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) ने अहम भूमिका निभाई थी. आज ही के दिन साल 1863 में पश्चिम बंगाल की राजधानी कलकत्ता में उनका जन्म हुआ था. उनका असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, लेकिन सन्यासी जीवन में आने के बाद उनका नाम स्‍वामी विवेकानंद हो गया. बेहद कम उम्र में ही उन्‍होंने वेद और दर्शन शास्‍त्र का ज्ञान हासिल कर लिया था. स्‍वामी विवेकानंद ने कहा था कि अपने जीवन के लिए एक लक्ष्य निर्धारित करो और अपने पूरे शरीर को उस लक्ष्य से भर दो, और हर दूसरे विचार को अपने जीवन से निकाल दो. यही है सफल होने का मूल मन्त्र है, आज भी हम में से कई लोग युवाओं की इंस्प्रेशन डॉ APJ अब्दुल कलाम को मानते है, लेकिन क्या आप इस बारें में जानते है कि अब्दुल कलाम की इंस्प्रेशन कौन है. नहीं न हम बता दें कि उनकी  इंस्प्रेशन और कोई नहीं बल्कि स्वामी विवेकानंद है. और सिर्फ यही नहीं बल्कि निकोला टेस्ला, लाल बहदुर शास्त्री समेत कई ऐसे बड़े लीजेंड्स है जिनकी इंस्प्रेशन स्वामी विवेकानंद है. वहीं आज हम उनके जीवन की कुछ ऐसी कहानी बताने जा रहे है जिसके बारें में बहुत ही कम लोगों को पता होगा. तो चलिए जानते है. 

पहली कहानी- एक बार स्वामी विवेकानंद को नदी पार करना था और वह नदी के पास ही खड़े थे, तभी एक साधू ने उनके पास आकर पूछा कि क्या आप ही  स्वामी विवेकानंद है, उन्होंने जवाब दिया जी हां मैं ही  स्वामी विवेकानंद हूँ, तभी साधू ने उनसे प्रश्न किया कि आप यहाँ क्या कर रहे हो, तो  स्वामी विवेकानंद ने जवाब दिया- कि मुझे नदी पार करना है, इसलिए में नाव का इंतज़ार कर रहा हूँ. तभी उनकी इस बात पर साधू ने कहा कि आप इतने बड़े इंसान हो और कई बड़े लोग आपको अपनी प्रेरणा का स्त्रोत भी मानते है. और आप एक नदी पा नहीं कर सकते, देखो में तुम्हे नदी पार करके बताता हूँ. तभी उस साधू ने उस नदी पर चलकर उसे पार किया, और वापस से पानी पर चलकर  स्वामी विवेकानंद के पास आया, और कहा कि देखो मेरे पास इतनी शक्ति है, इतना ज्ञान है. लेकिन इसके बाद भी मुझे कोई नहीं जानता है. परन्तु तुम्हारे पास न तो शक्ति है न ज्ञान है फिर भी हर कोई तुम्हे पहचानता है. तभी  स्वामी विवेकानंद मुस्कुराए और साधू से पूछा, कि तुम्हे ये विद्या सीखने के लिए कितना टाइम लगा, साधू ने उत्तर दिया कि 15 वर्ष, तभी  स्वामी विवेकानंद की नाव आ गई, और  स्वामी विवेकानंद ने साधू को नाव में बैठाया और वहां से चल दिए. दोनों ने नदी को पार किया अलगे छोर पर पहुंचने के बाद  स्वामी विवेकानंद ने अपनी जेब से 1 रूपया निकला और नाव वाले को दे दिया. तभी  स्वामी विवेकानंद ने साधू से कहा जो काम तुम 50 पैसे में कर सकते थे उसी काम के लिए तुमने अपनी जिंदगी के 15 वर्ष व्यर्थ कर दिए. और यदि यही 15 वर्ष यदि तुम समाज की भली में लगाते तो आज हर कोई तुम्हे जानता.  और मेने भी यही किया इसलिए आज पूरी दुनिया मुझे जानती है और तुम्हे नहीं, जिसके बाद भी  स्वामी विवेकानंद ने साधू से कहा तुम्हारी तरह आज भी दुनिया में कई सारे ऐसे लोग है जो अपना समय ऐसे ही व्यर्थ कर देते है और अपनी लाइफ में कुछ नहीं कर पाते है. इसलिए अपने कीमती समय को किसी ऐसी जगह लगाओ  जिसका लाभ सारी जिंदगी तुम्हे मिल सके. 

दूसरी कहानी- एक बार  स्वामी विवेकानंद एक ब्रिज पर चल रहे थे, तभी वहां पर उनके ऊपर कुछ बन्दर लपट जाते है, कोई बन्दर उन्हें नोच रहा तो कोई उनके हाथ से प्रसाद छीन रहा, और  स्वामी विवेकानंद उन बंदरों से अपना पीछा छुड़ाने के लिए वहां से भागने लगे. स्वामी विवेकानंद भागे जा रहे थे और वे बंदर भी उनके पीछे ही भाग रहे थे. तभी एक व्यक्तगि ने  स्वामी विवेकानंद से कहा कि तुम डरो मत इनका सामना करो क्यूंकि तुम जितना ज्यादा इनसे डरोगे ये उतना ज्यादा तुम्हे परेशान करेंगे. तभी  स्वामी विवेकानंद पीच मुड़ते है और बड़ी बड़ी आँखे निकाल कर उन बंदरों का जोर से चीखते है. तभी सारे बंदर वहां से भाग जाते है. और उन्ही बंदरों की तरह होते है हमारे नकारात्मक विचार जिनसे हम डरते है,और हम जितना ज्यादा इनसे डरेंगे ये उतना ज्यादा हमें डराएंगे. इसलिए नकारात्मक विचार से डरो मत बल्कि उनका डटकर सामना करो. इससे ही आप अपने जीवन में आगे बढ़ सकते है. 

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