जब किसान ने सिखाया तमाम भिक्षुओं सभ्यता का पाठ
जब किसान ने सिखाया तमाम भिक्षुओं सभ्यता का पाठ
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एक अत्यंत असभ्य किसान जो की अधेड़ उम्र पार कर चुका था एक बौद्ध मठ के द्वार पर आकर खड़ा हो गया। जब भिक्षुओं ने मठ का द्वार खोला तो उस किसान ने अपना परिचय कुछ इस प्रकार दिया,भिक्षु मित्रों ! मैं विश्वास से ओतप्रोत हूँ। और मैं आप लोगों से अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूँ। उससे बात करने के बाद भिक्षुओं ने आपस में बातचीत की और यह निष्कर्ष निकाला कि चूँकि इस किसान में चतुरता और सभ्यता की कमी लग रही थी अतः ज्ञान प्राप्त करना भिक्षुओं को उसके बस की बात नहीं लगी। और आत्मविकास के विषय में समझ पाना तो उस किसान के लिए असंभव सा प्रतीत होता था। किन्तु वह व्यक्ति आशा और विश्वास से भरपूर प्रतीत होता था।

अतः भिक्षुओं ने उसे कहा, भले आदमी! तुम्हे इस मठ की सफाई की संपूर्ण ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है। रोजाना तुम्हें इस मठ को पूरी तरह से साफ़ रखना है। हाँ ! तुम्हें यहाँ रहने और खाने-पीने की सुविधा प्रदान की जाएगी। कुछ माह के पश्चात उस मठ के भिक्षुओं ने पाया की वह किसान अब पहले से अधिक शांत प्रतीत होता था, अब उसके चेहरे पर हर समय एक मुस्कान फ़ैली रहती थी और उसकी आँखों में एक अभूतपूर्व चमक हर समय दिखाई देती थी। वह हर समय सुखी, सन्तुष्ट, संतुलित और शांति से भरपूर दिखाई देने लगा था। अंततः भिक्षुओं से रहा न गया और उन्होंने उस किसान से पूछ ही लिया, भले आदमी ! ऐसा प्रतीत होता है कि इन महीनों में, जबसे तुम यहाँ आये हो, तुम्हारे भीतर एक अभूतपूर्व अध्यात्मिक परिवर्तन हुआ है। क्या तुम किसी विशेष नियम या ध्यान की किसी विशेष विधि का पालन कर रहे हो? 

इस पर उस किसान ने उत्तर दिया, भाइयों, मैं पूरी लगन, मेहनत और प्रेम से अपने लक्ष्य को पूर्ण करने में लगा रहता हूँ। मेरे मस्तिष्क में मेरा लक्ष्य एकदम स्पष्ट है। और हाँ ! जैसे-जैसे मैं इस मठ की गन्दगी और कूड़े-करकट को साफ़ करता हूँ, वैसे-वैसे मैं कल्पना करता हूँ, कि जैसे मेरे मन से धोखा, ईर्ष्या, द्वेष, लालच और घृणा की भावनाएं भी बाहर निकल रही हैं, समाप्त हो रही हैं। और इसी कारण, प्रत्येक दिन मैं पहले से अधिक सुखी होता जाता हूँ । मेरा लक्ष्य है, इस मठ को स्वच्छ और साफ़ रखना। और जैसे जैसे मेरे मन का मैला साफ़ होता चला जायेगा में स्वयं ही आध्यात्मिक होने लगूंगा ।

 

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