मालिश यूँ तो हल्के हाथो द्वारा शरीर की त्वचा को हलके घर्षण, थपकी, कम्पन आदि से संतुलित मात्रा में तेल लगाना है. इसका मुख्या उद्देश्य शरीर के शिथिल स्नायु तंत्र को आराम पहुंचते हुए रक्त-संचार को सुचारू करना और नियंत्रित गति देना है. पर मालिश करने के भी अपने कुछ नियम और मर्यादाएं है.
आइये जाने कब करे और कब न करे मालिश :-
1 मालिश में साधारणतया सरसो, नारियल, तिल, तथा जैतून के तेल प्रयोग मेँ लाया जाता है, सरसो का तेल सभी अवस्थाओं मेँ प्रयोग मेँ लाया जा सकता है किंतु यदि आप स्नायु से संबंधित रोग से ग्रस्त हो या जिनका स्वभाव हमेशा चिडचिडा रहता हो उनको नारियल का तेल प्रयोग करना चाहिए.
2 पेट की मालिश करते समय यह ध्यान रहे कि मालिश लेने वाला व्यक्ति भोजन को किए हुए कम से कम तीन घण्टे हो गये हों तथा शौच आदि से निवृत हो चुका हो.
3 पेट की मालिश कुछ दशाओं में वर्जित है जैसे:- स्त्रियों के गर्भ होने पर, मासिकधर्म की दशा में, पेट में गाँठ या ट्यूमर होने पर, हार्निया रोग में, एपेंजीसाइटिस, दस्त आने पर, आँख आने पर, पेट में किसी प्रकार का घाव होने पर आदि दशाओं में पेट की मालिश वर्जित हैं।
4 मालिश से स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य और भी ठीक होता है तथा रोगी का रोग भी दूर होता है। अजीर्ण, कोष्ठबद्धता, आँतों की कमजोरी, बवासीर, अनिद्रा रोग में, स्नायु−दौर्बल्य, दर्द, लकवा आदि में तो राम−बाण है.
5 मालिश स्वस्थ मनुष्य से करायें, मालिश करने वाला यदि स्वयं रोगी होगा तो मालिश कराने वाले को उसका रोग आ सकता है.
6 जिसके हाथ में पसीना बहुत आता हो उससे भी मालिश न करावे। मालिश उसी से करावें जिसका हाथ कोमल तथा सूखा हो.
7 चर्म रोग पर मालिश कमी न करे नहीं तो रोग बढ़ेगा .
8 बुखार की दशा में मालिश हानिकर है.
9 फोड़ा, फुन्सी, चोट आदि होने पर उन स्थानों को बचाकर सावधानी से मालिश करना चाहिये.
सर्दियों में भी पिये भरपूर पानी