नई दिल्ली: हिंदुस्तान में दलित-मुस्लिम की राजनीति कोई नई नहीं है, तमाम सियासी दल इन दोनों समुदाय के लोगों को रिझाकर, उनके दम पर सत्ता सुख पाने की कोशिश करते रहे हैं। वर्तमान में भी यही सिलसिला जारी है, फिर चाहे खुद को दलितों का सबसे बड़ा शुभचिंतक बताने वाली मायावती हों, या मुस्लिमों के लिए आवाज़ उठाने वाले असदुद्दीन ओवैसी, दोनों जोर-शोर से जय भीम-जय मीम का नारा बुलंद करते रहे हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि दलितों के सर्वोच्च नेता और भारत के संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर इस संबंध में क्या राय रखते थे। आज बाबा साहेब की जयंती पर हम आपको इसी बारे में कुछ अहम जानकारी देने जा रहे हैं।
भारत रत्न भीमराव अंबेडकर ने अपनी पुस्तक पाकिस्तान ओर पार्टीशन ऑफ़ इंडिया में मुस्लिम समुदाय के प्रति अपनी राय रखी है। बाबा साहेब के शब्दों में 'इस्लाम एक बंद निकाय की तरह है, जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच जो भेद करता है,वह मूर्त और स्पष्ट है। इस्लाम में जिस भाईचारे की बात की गई है, वो सिर्फ मुस्लिमों का मुस्लिमों के साथ भाईचारा है। इस्लामिक बिरादरी जिस भाईचारे की बात करता है, वो उसके भीतर तक ही सीमित है। जो भी इस बिरादरी से बाहर का है, उसके लिए इस्लाम में कुछ नहीं है- सिवाय अपमान और दुश्मनी के।'
उन्होंने अपनी किताब में आगे लिखा हैं कि, 'इस्लाम के अंदर एक अन्य खामी ये है कि ये सामाजिक स्वशासन की ऐसी प्रणाली है, जो स्थानीय स्वशासन को छाँट कर चलता है। एक मुस्लिम कभी भी अपने उस वतन के प्रति वफादार नहीं रहता, जहाँ उसका निवास-स्थान है, बल्कि उसकी आस्था उसके मज़हब से रहती है। मुस्लिम ‘जहाँ मेरे साथ सबकुछ अच्छा है, वो मेरा देश है’ वाली अवधारणा पर विश्वास करें, ऐसा सोचा भी नहीं जा सकता।'
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