वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो निर्माण और डिजाइन में संतुलन और समृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न नियमों और उपायों का पालन करने की सलाह देता है। विशेष रूप से, व्यावसायिक स्थल के वास्तु का ध्यान रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और व्यवसाय में सफलता और समृद्धि की संभावना को बढ़ाता है। उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के सहायक प्रोफेसर और समन्वयक डॉ. नंदन कुमार तिवारी द्वारा लिखित पुस्तक 'गृह निर्माण विवेचन' में ऑफिस और दुकान के वास्तु के लिए कई महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान किए गए हैं। आइए जानें इन दिशा-निर्देशों को विस्तार से:
ऑफिस का वास्तु
विभागों का स्थान:
कैशियर और अकाउंटेंट विभाग: ऑफिस में कैशियर और अकाउंटेंट विभाग को उत्तर की दिशा में स्थित करना चाहिए। यह दिशा वित्तीय स्थिरता और धन की वृद्धि के लिए शुभ मानी जाती है।
सेल्समेन और बाहरी कर्मचारी: सेल्समेन, एजेंट, पोस्टमेन और अन्य बाहरी कर्मचारियों की बैठने की जगह वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में होनी चाहिए। यह दिशा इन कर्मचारियों की गतिविधियों को प्रबंधित करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
प्रवेश द्वार:
ऑफिस का एंट्री गेट उत्तर-पूर्व या उत्तर-पश्चिम दिशा में होना चाहिए। यह दिशा सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करती है और कार्यस्थल पर अच्छे वाइब्स को बनाए रखती है।
टेबल पर वस्तुएं:
ऑफिस की टेबल पर प्लांट, घड़ी, ग्लोब, नोटपैड, पेन आदि को व्यवस्थित तरीके से रखना शुभ माना जाता है। ये वस्तुएं कार्यस्थल पर समृद्धि और अनुशासन को बढ़ावा देती हैं।
दुकान का वास्तु
जमीन का प्रकार:
दुकान, शोरूम या मॉल के निर्माण के लिए जमीन का आकार वर्गाकार, आयताकार, या सिंहमुखी होना शुभ माना जाता है। यह आकार स्थिरता और संतुलन प्रदान करता है।
अलमारी और रैक:
दुकान में अलमारी, शोकेस, और रैक को दक्षिण या पश्चिम दिशा में रखना चाहिए। इन दिशाओं में रखे गए सामान व्यापारिक लाभ को बढ़ावा देते हैं और स्थिरता बनाए रखते हैं।
तिजोरी:
तिजोरी को दक्षिण या पश्चिम की दीवार के सहारे स्थापित करना चाहिए। यह दिशा तिजोरी के लिए स्थिरता और सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे आर्थिक संपत्ति की रक्षा होती है।
खिड़कियां:
ऑफिस या दुकान में खिड़कियां पूर्व या उत्तर दिशा में होनी चाहिए। यह दिशाएं प्राकृतिक रोशनी और सकारात्मक ऊर्जा को अंदर लाती हैं।
प्रवेश द्वार:
दुकान में प्रवेश द्वार पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। यह दिशा दुकान में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश सुनिश्चित करती है और ग्राहकों को आकर्षित करती है।
पूजाघर:
दुकान के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में पूजाघर का निर्माण करवाना चाहिए। यह दिशा आध्यात्मिक ऊर्जा को आमंत्रित करती है और व्यापार में सफलता की संभावना को बढ़ाती है।
काउंटर की स्थिति:
दुकान में काउंटर को ऐसी जगह पर रखना चाहिए जहां विक्रेता का मुख पूर्व या उत्तर की ओर हो और ग्राहक का मुख दक्षिण या पश्चिम दिशा में हो। इस व्यवस्था से व्यापारिक लेन-देन में स्पष्टता और पारदर्शिता बनी रहती है।
इन वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करने से व्यावसायिक स्थल पर नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सफलता और समृद्धि की संभावना बढ़ती है। सही दिशा और स्थान पर ध्यान देने से व्यवसाय में स्थिरता और वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है।
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