आखिर क्यों पड़ी 'नई शिक्षा नीति' की जरुरत ? जानिए 1968 से 2020 तक कैसे बदलती गई शिक्षा पद्धति
आखिर क्यों पड़ी 'नई शिक्षा नीति' की जरुरत ? जानिए 1968 से 2020 तक कैसे बदलती गई शिक्षा पद्धति
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शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, बचपन से व्यक्ति जो पढ़ता है, देखता है, उसी से उसकी विचारधारा का निर्माण होता है और आगे जाकर वही उसका व्यक्तित्व बन जाता है। वर्तमान परिदृश्य में बेहतर तरीके से जीना ही हमारी शिक्षा का उद्देश्य है। ज्ञान की सार्थकता तभी है, जब वो हमारे जीवन में उतरकर उसे समृद्ध बनाए। मौजूदा समय में देश में जिस तरह की पढ़ाई चल रही है, उसमे केवल बच्चे पर अधिक से अधिक अंक लाने का दबाव होता है, बस किसी तरह रट्टा मारकर, कई जगह कोचिंग लगाकर 90 फीसद से अधिक अंकों वाली मार्कशीट हासिल करना ही एक मात्र लक्ष्य रह गया है। जबकि इसी शिक्षा में अपने देश की संस्कृति, सभ्यता, परंपरा, जीवनशैली, वेशभूषा, भाषा, नैतिक मूल्यों एवं आदर्शो की पहचान के साथ इतिहास की जानकारी भी शामिल होती है। यदि व्यक्ति इन मूलभूत शिक्षाओं से वंचित रह जाए, या सत्य की जगह मिथ्या तथ्यों को आत्मसात करने लगे, तो आगे जाकर हो सकता है कि उसकी अपने राष्ट्र के प्रति श्रद्धा और सम्मान कम होने लगे और वह विदेशी विचारधारा का गुलाम होने लगे। इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आज भी कई तथाकथित बुद्धिजीवी भारत को 'सपेरों का देश' कहते हैं और उन्हें अपने देश की पद्धति से अन्य देशों की पद्धतियों पर अधिक विश्वास होता है। इसका पता आप आयुर्वेद और एलोपैथी के प्रति लोगों के विचार जानकर लगा सकते हैं।

खैर हम यहां बात कर रहे थे शिक्षा की, इसी शिक्षा पद्धति में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के दावे के साथ केंद्र की मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति का ऐलान कर दिया है। इसके जरिए सरकार दावा कर रही है कि, देश का गौरवशाली इतिहास, जिसे अभी तक पाठ्यपुस्तकों में जगह नहीं मिली, जिससे अब तक छात्रों को वंचित रखा गया, उसे संजोकर वह पुनर्जीवित करेगी और बच्चों में इसके जरिए राष्ट्रप्रेम के साथ ही राष्ट्र सम्मान की भावना भी जागृत करेगी। हम आए दिन न्यूज़ चैनल्स पर देखते हैं कि किसी भी देश के नागरिकों को बंधक बनाए जाने पर उस देश की सरकार तुरंत ही बंधकों को छुड़ाने की कोशिश करती है। आज हमारे देश में कुछ इसी तरह की वैचारिक गुलामी हावी हो रही है, जिससे छुड़ाने के लिए सरकार यह नई शिक्षा नीति लेकर आई है। अब सरकार की यह कोशिश कितनी कामयाब होती है, यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा। इस नई शिक्षा नीति के तहत सरकार ने स्कूली शिक्षा के बुनियादी ढांचे में थोड़ा बदलाव किया है।

पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने एक ट्वीट में नई शिक्षा के पांच स्तंभों की जानकारी दी थी। ये पांच स्तंभ हैं एक्सेस (सब तक पहुंच), इक्विटी (भागीदारी), क्वालिटी (गुणवत्ता), अफोर्डेबिलिटी (किफायत) और अकाउंटेबिलिटी (जवाबदेही)। इसी के आधार पर यह नई शिक्षा नीति काम करेगी ।  आइए जानते हैं कैसे :-

स्कूली शिक्षा:- 

-नई शिक्षा नीति में 5 + 3 + 3 + 4 डिज़ाइन वाले शैक्षणिक संरचना का प्रस्ताव किया गया है जो 3 से 18 वर्ष की उम्र वाले बच्चों को शामिल करता है।

- शिक्षण के माध्यम के रूप में पहली से पांचवीं तक मातृभाषा का इस्तेमाल किया जायेगा। इसमें रट्टा पद्धति को ख़त्म करने की भी कोशिश की गई है, जिसे वर्तमान व्यवस्था की बड़ी खामी माना जाता है। 

- इसके तहत 6 से 9 वर्ष के बच्चों के लिए बुनियादी साक्षरता और संख्या ज्ञान पर फोकस होगा। इसके लिए नेशनल मिशन बनेगा।

- कक्षा 5 तक तक आते-आते बच्चे को भाषा और गणित के साथ उसके स्‍तर के सामान्य ज्ञान को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा।खेल-खेल में बच्चे को शिक्षा दी जाएगी।

-कक्षा 6-8 तक के लिए मल्‍टी डिसीप्लीनरी कोर्स होंगे। इसमें विभिन्न एक्टिविटीज के जरिये शिक्षा दी जाएगी। कक्षा 6 के बच्‍चों को कोडिंग सिखाएंगे। 8वीं तक के बच्चों को एक्सपेरिमेंट के साथ सिखाया जाएगा।

- कक्षा 9 से 12 तक के बच्‍चों की रुचि यदि संगीत में है, तो वह साइंस के साथ म्यूजिक ले सकेगा। केमेस्ट्री के साथ बेकरी, कुकिंग की पढाई भी कर सकेगा। इस दौरान प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग पर जोर दिया जाएगा, ताकि जब बच्चा 12वीं के बाद स्कूल से निकले तो उसके पास ऐसा एक हुनर हो, जो जरुरत पड़ने पर आजीविका के रूप में उसके काम आए।  

उच्च शिक्षा:-

- नई शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में ‘सकल नामांकन अनुपात’ (Gross Enrolment Ratio) को 26.3 फीसद (वर्ष 2018) से बढ़ाकर 50 फीसद तक करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, इसके साथ ही देश के उच्च शिक्षण संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा।

- उच्च शिक्षा में विषयों के क्रिएटिव कॉम्बिनेशन के साथ छात्रों को बीच में विषय बदलने का मौका मिलेग। 

- NEP 2020 के तहत एम.फिल. (M.Phil) कार्यक्रम को ख़त्म कर दिया गया है।

- सभी विश्वविद्यालयों के लिए एक प्रवेश परीक्षा होगी, जिससे विद्यार्थियों का वक़्त और पैसा दोनों बचेगा। 

- NEP 2020 के अनुसार सरकारी और निजी सभी उच्च शिक्षण संस्थानों पर एक ही तरह के नियम और मानक लागू होंगे। 

- उच्च शिक्षा में रिसर्च की संस्कृति और क्षमता बढ़ाने के लिए सर्वोच्च संस्था के तौर पर नेशनल रिसर्च फाउंडेशन का गठन किया जाएगा। 

- क्षेत्रीय भाषाओं में ई-कोर्स आरंभ किए जाएंगे। वर्चुअल लैब्स बनाए जाएंगे। एक नेशनल एजुकेशनल साइंटफिक फोरम (NETF) शुरू किया जाएगा।

- देश में 45,000 कॉलेज हैं। ग्रेडेड स्वायत्तता के तहत कॉलेजों को शैक्षणिक, प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्तता दी जाएगी।

- इसके तहत स्नातक पाठ्यक्रम में मल्टीपल एंट्री एंड एक्ज़िट व्यवस्था को लागू किया गया है, इसके तहत 3 या 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम में छात्र कई स्तरों पर पाठ्यक्रम को छोड़ सकेंगे और उन्हें उसी के अनुरूप डिग्री या प्रमाण-पत्र प्रदान किया जाएगा (1 वर्ष के बाद प्रमाण-पत्र, 2 वर्षों के बाद एडवांस डिप्लोमा, 3 वर्षों के बाद स्नातक की डिग्री और 4 सालो के बाद शोध के साथ स्नातक)।

 

- इसके साथ ही SC, ST, OBC और अन्य सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों से संबंधित मेधावी छात्रों को प्रोत्साहन के रूप में वित्तीय सहायता भी दी जाएगी।


इससे पहले कब बदली थी देश की शिक्षा नीति :-

देश की आज़ादी के बाद 1968 में पहली शिक्षा नीति की घोषणा की गई थी। यह कोठारी कमीशन (1964-1966) की अनुशंसाओं पर आधारित थी। इस नीति को तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने लागू किया था। इसके तहत सभी नागरिकों को शिक्षा उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया था। इसके तहत कुछ मानक तय किए गए थे :-

- इसके तहत देश के हर बच्चे को चाहे उसकी जाति, धर्म या क्षेत्र कुछ भी हो, शिक्षा प्राप्ति का समान अवसर मिलना चाहिए। शिक्षा सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए पिछड़े वर्गों, अल्पसंख्यकों के बच्चों, लड़कियों और शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

- 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिये अनिवार्य शिक्षा का लक्ष्य और शिक्षकों का बेहतर प्रशिक्षण और योग्यता पर फोकस।

- माध्यमिक स्तर पर ‘त्रिभाषा सूत्र’ लागू करने का आह्वान किया गया।

- शिक्षा पर केन्द्रीय बजट का 6 प्रतिशत व्यय करने का लक्ष्य रखा गया।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986  :-

- भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सुधार हेतु सम्पूर्ण देश में एक शिक्षा व्यवस्था को अपनाते हुए 10+2+3 प्रणाली को लागू किया गया।

- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में देश की भारी जनसंख्या को देखते हुए निःशुल्क शिक्षा का प्रावधान रखा गया एवं बुनियादी शिक्षा के स्वरूप को स्वीकार किया गया।

- प्राथमिक शिक्षा के महत्व को देखते हुए ब्लैकबोर्ड योजना का निर्माण किया गया एवं 90 फीसद छात्रों को इसके द्वारा फायदा पहुचाने की योजना का निर्माण किया गया।

- इसमें विद्यार्थियों के व्यावहारिक पक्ष एवं शारिरिक पक्ष पर बल देते हुए प्राथमिक शिक्षा में इनको मुख्य स्थान प्रदान किया गया। जिससे शिक्षा के द्वारा छात्रों का सर्वांगीण विकास हो सकें।

- शिक्षा के उत्तम क्रियान्वयन हेतु शिक्षा के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी को केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं जिले के मुताबिक बांटा गया।

क्यों पड़ी नई शिक्षा नीति की आवश्यकता ?

आज 21वीं सदी में जब पूरी दुनिया विज्ञान और तकनीक के चरम को छु रही है, उसके क़दमों से कदम मिलाकर चलने के लिए केंद्र सरकार यह नई शिक्षा नीति लेकर आई है। अगर इसका क्रियान्वयन सफल रहता है, तो यह नई प्रणाली भारत को दुनिया के अग्रणी देशों के समकक्ष ले आएगी। इस शिक्षा नीति के साथ सरकार शिक्षा का स्वदेशीकरण करने की कोशिश में है।  सरकार का मानना है कि ब्रिटिश अफसर मैकाले ने भारत को गुलाम बनाने के लिए जो शिक्षा पद्धति यहाँ के लोगों पर थोपी थी, जिससे देश में काले अंग्रेज़ पैदा होने लगे हैं, उससे देशवासियों को वापस निकालने के लिए शिक्षा का स्वदेशीकरण बेहद जरुरी है। साथ ही 1986 के बाद से देश की शिक्षा नीति में कोई बदलाव भी नहीं हुआ था, जिससे आधुनिक भारत पिछड़ता नज़र आ रहा था। सरकार का मानना है कि यह नई शिक्षा नीति आधुनिक भारत को रफ़्तार देने का काम करेगी। हालांकि, अब देखना यह है कि यह शिक्षा नीति देश का कितना हित कर पाती है। 

 

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