पोंगल: आखिर क्या होता है जल्लीकट्टू, जानिए नियम-परम्परा और विवाद
पोंगल: आखिर क्या होता है जल्लीकट्टू, जानिए नियम-परम्परा और विवाद
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चेन्नई: तमिलनाडु (Tamilnadu) में आज यानी पोंगल पर्व-मकर संक्रांति (Makar Sankranthi) के अवसर पर होने वाले प्रसिद्ध जल्लीकट्टू (Jallikattu) खेल के लिए आयोजन शुरू हो गया है। आप सभी को बता दें कि यहाँ आज होने वाले आयोजन से दस दिन पूर्व से ही सांडों और खिलाड़ियों के रजिस्ट्रेशन और मेडिकल टेस्ट का काम भी शुरू हो गया है। आप सभी को बता दें कि तमिलनाडु का मदुरई (Madurai) इलाका जल्लीकट्टू का सबसे बड़ा केंद्र है और उसमें भी तीन स्थान सबसे प्रसिद्ध हैं। इसमें नंबर एक पर है अलंकानालुर (Alankanallur) का जल्लीकट्टू, जिसे देखने के लिए विदेशी पर्यटक भी आते हैं। आपको यह भी बता दें कि पालामेडू (Palamedu) में भी जल्लीकट्टू होता है।


कैसे खेलते हैं जल्लीकट्टू- जल्लीकट्टू सांडों को काबू में करने का खेल है। जी हाँ और विशेष तरीके से प्रशिक्षित सांडों को एक बंद स्थान से छोड़ा जाता है, बाहर खेलने वालों की फौज मुस्तैद खड़ी रहती है। इस दौरान बेरिकेटिंग से बाहर बड़ी संख्या में दर्शक इसका आनंद उठाने के लिए जमे रहते हैं। वहीं जैसे ही सांड छोड़ा जाता है, वह भागते हुए बाहर निकलता है, लोग उसे पकड़ने के लिए टूट पड़ते हैं। इस दौरान असली काम सांड के कूबड़ को पकड़कर उसे रोकना और फिर सींग में कपड़े से बंधे सिक्के को निकालना होता है। हालाँकि बिगड़ैल और गुस्सैल सांड को काबू में करना आसान नहीं होता। इस दौरान अधिकांश लोगों को असफलता हाथ लगती है और कई लोग इस कोशिश में चोटिल भी हो जाते हैं। वहीं इस कवायद में कइयों की जान भी चली जाती है। हालाँकि परंपरा और रोमांच से जुड़े इस खेल के प्रति खिलाड़ियों और दर्शकों का जुनून गजब का होता है। इस दौरान जो विजयी होते हैं उनको ईनाम मिलता है।

जल्लीकट्टू की प्राचीन परंपरा- आप सभी को बता दें कि जल्लीकट्टू विशुद्ध ग्रामीण खेल है, जो तमिलनाडु की प्राचीन परंपरा से जुड़ा है। जी दरअसल कुछ लोग इसका इतिहास ढाई हजार वर्ष पुराना बताते हैं। कहा जाता है इस खेल की शुरुआत ई।पू। 400-100 के बीच मानते हैं, जिसे तमिल शास्त्रीय काल कहा जाता है। वहीं तमिल संस्कृति के जानकार यह भी बताते हैं कि यह खेल अय्यर लोगों में प्रचलित था, जो तमिलनाडु के मुल्लै नामक भूभाग में रहते थे, जो अभी का मदुरई इलाका है। यहाँ सांड के सींग में जो कपड़े से सिक्का बांधा जाता है, वहीं इसके मूल में है। कहा जाता हैं कि ‘जल्ली’ शब्द दरअसल तमिल के ‘सल्ली’ से बना है, जिसका अर्थ ‘सिक्का’ है और कट्टू का अर्थ ‘बांधा हुआ’ होता है। वहीं कई स्थानों पर शादी के स्वयंवर के तौर पर सांड पकड़ने की परपंरा का उल्लेख मिलता है। वैसे कभी शौर्य और वीरता का पर्याय रहा यह उत्सव अब महज खेल और मनोरंजन के रुप में परिवर्तित हो चुका है। हालाँकि तमिल लोगों में इसका क्रेज जबर्दस्त है।


आपको बता दें कि जल्लीकट्टू में भाग लेने वाले सांडों की एक विशेष प्रजाति होती है। इसको पालने वाले साल भर इसे खूब खिला-पिलाकर मजबूत बनाते हैं। इस पर्व के नजदीक आने पर इनको विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। वहीं मदुरई के गांवों में सांडों को सुबह-शाम रियाज कराने का काम होता है। जी हाँ और इसके तहत रोज बड़े जलाशय में तैराकी करायी जाती है। आपको बता दें कि इसके अलावा एक और विशेष ट्रेनिंग होती है जिसे तमिल में मान कुत्थाल ( Mann kuthal) कहते हैं। जी हाँ और इसमें सांड अपनी सींग से जमीन खोदते हैं। यह ट्रेनिंग बहुत विशिष्ट और श्रमसाध्य होती है। इस दौरान प्रशिक्षण पाए सांड का फिर मेडिकल टेस्ट होता है और तब जाकर जल्लीकट्टू के लिए उनका रजिस्ट्रेशन होता है। वहीं इसमें भाग लेने वाले खिलाड़ियों को भी रजिस्ट्रेशन और मेडिकल टेस्ट से गुजरना पड़ता है। कोविड के चलते इस बार नियम थोड़ा और सख्त है।


कई बार हुआ विवाद- बीते कुछ वर्षों में जल्लीकट्टू को लेकर विवाद भी हुआ और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। जी दरअसल पशुप्रेमियों की एक संस्था की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में इस खेल पर रोक लगा दी। उस दौरान यह कहा गया था कि जानवरों पर अत्याचार होता है, सैकड़ों लोग घायल होते हैं और कई लोग जान गंवा बैठते हैं। हालाँकि परंपरा और आस्था का हवाला देकर पूरा तमिलनाडु फैसले के खिलाफ आंदोलित हो गया। उसके बाद आम तमिलियन से लेकर फिल्म और राजनीति से जुड़े लोग भी जल्लीकट्टू को जारी रखने के पक्ष में गोलबंद हो गये। CM ने प्रधानमंत्री से मिलकर हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई। केवल यही नहीं बल्कि सुपरस्टार रजनीकांत से लेकर कमल हासन तक आम लोगों की भावना के साथ खड़े रहे और अंत में एक अध्यादेश के जरिये खेल की परंपरा को जारी रखने की अनुमति दे दी गई।

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