आखिर क्या है भीमा कोरेगांव मामला ?
आखिर क्या है भीमा कोरेगांव मामला ?
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नई दिल्ली: जब दशकों से चुप रहे 'नायक' आखिरकार बात करते हैं, तो उनसे चुप रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती वे ऐतिहासिक रूप से दमनकारी सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ बात करते हैं, दलित उत्पीड़न पर महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगाव में जो कुछ हुआ, वह यही था. सदियों से दमन झेल रहे दलित समुदाय ने आंदोलन के समय भयानक रूप ले लिया था. किन्तु अब जब दलितों का दमन और ब्राह्मणवादी सत्ता का भी लोप हो चूका है, ऐसे में अतीत की दुश्मनी को याद कर आज की लड़ाई लड़ना भी सही नहीं है. 

क्या हुआ था भीमा कोरेगांव हिंसा में ?
1 जनवरी 2018 को सभी क्षेत्रों के दलितों ने पुणे शहर से 40 किलोमीटर दूर भीमा कोरेगांव में 200 साल पुरानी एक लड़ाई की जीत को शौर्य दिवस के रूप में मनाने के लिए इकठ्ठा हुई थी, इस लड़ाई में महाराष्ट्र में दलित-वर्चस्व वाली अंग्रेज़ आर्मी ने महाराष्ट्र के पेशवास को हराया था. इसके बाद से दलित समुदाय के लोगों की पहली जीत की 200वी सालगिराह मनाने के लिए इकट्ठे होते हैं. दलित समुदाय इस युद्ध को ब्राह्माणवादी सत्ता के खिलाफ जंग मानता है. इसी दौरान  कुछ लोग भगवा झंडे लेकर, भीम-कोरेगांव में इकट्ठे हुए लोगों पर हमला करने लगे थे. हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी, कई अन्य घायल हो गए थे और 40 से अधिक वाहन क्षतिग्रस्त हो गए थे. इस हिंसा से भड़के दलित समुदाय ने महाराष्ट के कई जिलों में बंद के साथ हिंसक प्रदर्शन किया था, जिसमे दलितों ने कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया था, साथ ही कई रेल मार्गों को भी अवरुद्ध कर दिया था.

क्यों भड़की थी हिंसा ?
1 जनवरी को भीमा कोरेगाँव में एकत्रित हुए लोगों पर हमला करने वाले लोग दक्षिण पंथी थे, दक्षिण पंथी लोगों ने 2018 में इसका विरोध किया था, उनका तर्क था कि  यह जीत अंग्रेजों की थी और इसका जश्न नहीं मनाया जा सकता. इस विरोध ने हिंसक रूप ले लिया था. जिसके बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जांच के आदेश दिया था. इस मामले में पुलिस ने इसी साल जून में 5 माओवादियों को गिरफ्तार किया था, जिनके पास से ऐसे दस्तावेज मिले थे, जो हिंसा में फ़िलहाल गिरफ्तार हुए 5 मानवाधिकार कार्यकर्ता की छवि को पेश करते हैं, इसी बिनाह पर उनकी गिरफ्तारियां हुई हैं.

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