​कोरोना वायरस के समाप्त होने के बाद ऐसा होगा नया भारत
​कोरोना वायरस के समाप्त होने के बाद ऐसा होगा नया भारत
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पीएम मोदी ने कोरोना को रोकने के लिए 3 मई तक लॉकडाउन 2 लागू किया है. वही, रहन-सहन और जन-जीवन का संबंध मनोस्थिति एवं शरीर की अनुकूलता पर निर्भर करता है. मनोस्थिति का निर्माण परिस्थितियों से होता है और शारीरिक अनुकूलता हमें अपने वातावरण, पर्यावरण तथा प्रकृति से हासिल हो जाती है. आज इस सवाल पर व्यापक चर्चा चल रही है कि कोविड-19 के बाद की दुनिया कैसी होगी? नि:संदेह दुनिया में होने वाले बदलावों के बीच भारत भी अछूता नहीं रहेगा. मानव सभ्यता को चुनौती देने वाली महामारी से बाहर निकलने के बाद देश के सामाजिक ताने-बाने, आर्थिक तौर-तरीकों, पर्यावरण के प्रति दृष्टिकोण, स्वास्थ्य को लेकर परिवारों के नजरिये सहित हमारे विविध कार्यपद्धतियों में बदलाव देखने को मिलेगा. अदृश्य वायरस की वजह से लॉक डाउन के दौर में समाज का हर व्यक्ति भविष्य में होने वाले बदलावों के लिए ‘मन और शरीर’ से तैयार हो रहा है. यह मनुष्य के सीखने का दौर है. हम भविष्य के संभावित बदलावों को सीख रहे हैं. चाहे भय वश हो या लक्ष्य वश अथवा बाधा वश ही क्यों न हो, हम नए तौर तरीकों को आजमा रहे हैं.

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वायरस के आने के बाद आज सेवा क्षेत्र के अनेक उपक्रमों से जुड़े लोग ‘वर्क फ्राम होम’ काम कर रहे हैं. बड़े-बड़े मीडिया संस्थान, कंसल्टेंसी फर्म, सूचना और प्रौद्योगिकी क्षेत्र इस कठिन दौर में इसी कार्यपद्धति केभरोसे ही चल रहे हैं. न तो नियोक्ताओं की और न ही काम करने वालो की मनोस्थिति पहले से इसके लिए तैयार थी, किंतु काम करने की यह नवाचारी संस्कृति इस प्रतिकूल दौर में ही मजबूरी का उपकरण बनकर चल रही है.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि आमूलचूल बदलाव शांतिकाल में नहीं बल्कि विपरीत परिस्थितियों में ही होते हैं. शिक्षा के क्षेत्र में भी दीर्घकालिक और स्थायी बदलावों की गुंजायश दिख रही है. ई-लर्निंग तथा ई-क्लासेस को बढ़ावा दिया जा रहा है. यह आवश्यक भी है, क्योंकि कोरोना पर तात्कालिक रूप से बेशक हम नियंत्रण कर लें, लेकिन स्थायी और सुरक्षित समाधान खोजने का रास्ता वर्षों तक चलने वाला है. ऐसे में यदि ‘ई-क्लासेस’ की संस्कृति के प्रति हम मन से तैयार होते हैं तो इससे शिक्षा सुलभता भी बढेगी और संसाधनों की बजाय शिक्षा की गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान केंद्रित हो पायेगा.

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