डरावनी है देश और बुंदेलखंड की तस्वीर
डरावनी है देश और बुंदेलखंड की तस्वीर
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आज विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर सारा सरकारी और निज़ी महकमा जुटा है इसे उत्सव के रूप में मनाने के लिए पर पर्यावरण का अस्तित्व बिना पानी के हो ही नही सकता जिसकी सुध लेने के लिए किसी के पास समय नही है। खोखले सरकारी वादे और कागज़ी योजनाओं का सच लोगों के सामने ठीक तरह से मौजूद नही है, विश्व के डरावने आंकड़े केप्टॉन और लीबिया के रूप में आज सामने है , भारत की बात करे तो बुंदेलखंड की स्थिति बहुत विकट हो रही है पर बड़े बड़े मंत्रालय पानी के नाम पर कागज़ों पर योजनाओं का जश्न मना रहे है।

देश ने 1972 का अकाल देखा है, उस अकाल में भी जो इलाके इसकी मार से बचे रह गए थे, उन इलाकों में भी इस साल अकाल की विभीषिका दस्तक दे रही हैं। इस बात से जमीनी हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। गांव के गांव खाली हो गए हैं, खेत मे फसल का दाना तक नहीं है। तालाबों का हाल मैदान जैसा है, कुओं में पानी नहीं है, कई-कई किलो मीटर का रास्ता तय करके पीने के पानी का इंतजाम हो पा रहा है। साथ ही गांव में एक या दो हेंडपंप पानी दे पा रहे हैं। नदियों भी सूख रही हैं।

जल संकट ने आम आदमी की जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित कर रखा है। बुंदेलखंड की बात करें तो इन दिनों इस इलाके के 13 जिले जिनमें से छह मध्य प्रदेश और सात उत्तर प्रदेश में आते है, हर तरफ पानी को लेकर मारा-मारी मची हुई है। ऐसे जल स्त्रोत जहां पानी है, दिन हो या रात हर वक्त लोगों की भीड़ लगे रहना आम बात है। कई बार तो झगड़े तक की स्थिति बन जाती है।

यहां बता दें कि, बुंदेलखंड वह इलाका है जहां चंदेल और बुंदेलकालीन राजाओं ने सात हजार से ज्यादा तालाब बनवाए थे, मगर आज बमुश्किल से एक हजार ही अस्तित्व में बचे है। जल संरक्षण की कोई योजना नहीं है। सरकारें सिर्फ वादे करती हैं। योजनाएं बनाती है, बुंदेलखंड पैकेज में साढ़े सात हजार करोड़ रुपया गया, मगर एक जल संरचना अस्तित्व में नजर नहीं आती है। यह सब सरकारी मशीनरी भ्रष्टाचार के कारण हुआ है।
  
मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के छह जिलों के हालात की जमीनी हकीकत जानने के लिए जमीनी सर्वेक्षण किया गया तो चैंकाने और दिल दहलाने वाली घटनाएं सामने आईं। रोजगार का प्रबंधन होने के कारण बड़ी संख्या में अर्थात लगभग 60 से 70 फीसदी परिवार पलायन कर गए है, गांव में बच्चे और बुजुर्ग बचे हैं। हालत यह है कि, बुजुर्गों को खाने के लाले पड़ रहे हैं। इतना ही नहीं जो रोजगार की तलाश में महानगर जाते हैं, उनकी जवान बेटियां और बहुएं यौन शोषण का षिकार बन रही है। कई मामले तो ऐसे सामने आए है, कि युवतियां लौटकर ही नहीं आईं। इतना ही नहीं कई मजदूरों को तो बंधुआ तक बना दिया गया । 

कई मामले तो ऐसे सामने आ रहे हैं कि, गांव में बुजुर्ग की मौत हो जाती है और पलायन कर महानगर गया परिवार गांव लौट ही नहीं पाता और उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। 

जल-जन जोड़ो अभियान की यात्रा निकली तो पता चला कि, दमोह जिले के बटियागढ़ विकास खंड के हिम्मतपुरा, शहजादपुरा ऐसे गांव हैं जहां 500 से ज्यादा मतदाता है, यहां एक भी हैण्डपम्प नहीं है। एक हैण्डपम्प में निजी मोटर डाल कर पानी निकाला जा रहा है। भाटिया पंचायत में 18 हेंडपंप में से तीन ही चालू हालत में हैं।

टीकमगढ़ जिले के चंदेलकालीन अधिकांष तालाब में गाद भरी है। उनकी सफाई नहीं हुई। बल्देवगढ़ के बड़े तालाब का भी यही हाल है। जन जागृति के चलते लोग ही आगे आ रहे है और तालाबों की सफाई में जुट गए है। छतरपुर जिले के बिजावर में कई जगह श्रमदान किया जा रहा है। 
टीकमगढ़ जिले के बनगांय, शुक्लान टोरिया, कोंडिया, गोर आदि वे स्थान है जहां परमार्थ समाज सेवी संस्थान ने ग्रामीणों की मदद से जल संरचनाओं का संरक्षण किया। साथ ही कई गांव में टैंकरों से पानी बटवाया जा रहा है। छतरपुर जिले के बड़ा मलेहरा क्षेत्र में कई तालाबों केा सुधारा गया है। 

देश और राज्य की सरकारें नदियों और जलस्त्रोतों केा बचाने की बजाय बचा पानी भी कंपनियों के हवाले करने पर तुली हुई हैं। मध्य प्रदेष में नर्मदा नदी को बचाने के लिए नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा निकाली जाती है, मगर नर्मदा का क्या हाल है, उसके उद्गम स्थल अमरकंटक में जाकर ही देखा जा सकता है, उद्गम पर ही नर्मदा सूख गई है। नर्मदा के किनारे उद्योग स्थापित हो रहे हैं, भोपाल के पास तो पानी बेचने वाली कंपनी ही स्थापित कर दी गई है। 

सरकार बुंदेलखंड की जमीनी हकीकत पर परदा डालने में लगी हुई है। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि इस इलाके के 54,780 हैंडपंप में से 4979 हैंडपंप पानी दे रहे हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि सिर्फ 10 फीसदी ही हैंडपंप पानी नहीं दे रहे। सरकार के आंकड़ों को सही मान लें तो फिर टैंकर चलाने और कार्ययोजना की जरूरत ही नहीं है, मगर हकीकत जुदा है। सवाल उठता है कि, अगर इतना पानी है तो समस्या क्यों है। 

पिछले दिनों जन-आंदोलन 2018 के सिलसिले में ओरछा में आयोजित सम्मेलन में हिस्सा लेने आए लोगों ने बताया था कि, 60 फीसदी से ज्यादा जल स्त्रोत पूरी तरह सूख चुके हैं, फसलों की पैदावार मुश्किल हो गई है, रोजगार के अवसर नहीं हैं, 50 फीसदी से ज्यादा लोग पलायन कर गए हैं, गांव में अब सिर्फ बुजुर्ग और बच्चे ही ज्यादा बचे हैं।‘
यहां महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि, जमीनी रिपोर्ट आने के बाद शिवराज सरकार ने आनन फानन में दो पेज का प्रेस नोट जारी कर बता दिया कि, बुंदेलखंड में पानी की समस्या नहीं है। यह दुखद है। सरकारों का रवैया ऐसा नहीं होना चाहिए। 
बुन्देलखंड से पलायन की हकीकत तो रेल्वे स्टेशनों पर जाकर देखी जा सकती है। हजारों परिवार पलायन कर रहे है इस कदर स्थिति भयानक है जिसका अंदाजा नही लगाया जा सकता।

मध्य प्रदेश के 13 जिले 110 तहसील सूखाग्रस्त घोषित

 

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