वीडियो : एक डुबकी से जुड़ जाते हैं आत्मा के परमात्मा से तार, सिंहस्थ में मिलता है आनंद अपार
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युगयुगीन उज्जयिनी: जहां आकर अशांत मन को भी सुकून मिलता है। पुराणों में इस शहर के लिए कहा गया है कि यह शहर स्वर्ग का कांतिमान खंड है। कहा जाता है कि कल्प के अंत में इसी नगर से युग की स्थापना होती है। इसलिए इस क्षेत्र को स्वयं भगवान संरक्षित रखते हैं। ऐसा नगर आज करोड़ों - करोड़ श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए आतुर है। समय बदला, रीतियां बदलीं और इस पौराणिक आयोजन का कुछ आकार - प्रकार भी बदला। हालांकि आज भी इसकी धार्मिक मान्यता वैसी ही है लेकिन फिर भी सिंहस्थ का महत्व उतना ही है।

दरअसल पौराणिक मान्यता है कि जब देवताओं और दानवों ने समुद्र मंथन किया तो उसके परिणामस्वरूप एक अमृत कलश निकला। इस कलश में ऐसा पदार्थ था जिसे पीने वाले अमर हो जाते। जब देवताओं को इसकी जानकारी लगी तो उन्होंने अमृत कलश को दानवों से संरक्षित रखने का प्रयास किया। ऐसे में देवता और दानवों के बीच छीना - झपटी हुई इसी बीच अमृत कलश से अमृत की बूंदे धरती पर चार स्थानों पर गिर गईं।

इन स्थानों में हरिद्वार, नासिक, प्रयाग और उज्जैन शामिल हैं। इसके बाद यहां पर कुंभ और उज्जैन में सिंहस्थ का आयोजन होने लगा। मान्यता थी कि जो भी इस दौरान पवित्र नदी में स्नान करेगा उसके सभी पाप धुल जाऐंगे। दूसरी ओर उसे पुण्यों की प्राप्ति होगी। ऐसे में इन स्थलों पर कुंभ का आयोजन होने लगा। 

उज्जैन को छोड़कर अन्य स्थलों पर अर्द्धकुंभ के आयोजन भी होते हैं। जबकि उज्जैन में सिंहस्थ का आयोजन होता है। इस बार यह आयोजन 22 अप्रैल 2016 से प्रारंभ होगा। दरअसल जब गुरू सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं तो सिंहस्थ का आयोजन होता है। इस बार आयोजित होने वाला सिंहस्थ अपने आप में विशेष है।

दरअसल पहली बार किसी महापर्व पर महिला अखाड़ों को स्नान की अनुमति मिली है। तो दूसरी ओर लोगों की उपेक्षा का शिकार किन्नरों को संत समुदाय में सम्मान मिला है। पहली बार किन्नरों का अखाड़ा अस्तित्व में आया है। बकायदा उन्होंने अपनी पेशवाई निकाली। वास्तव में यह नए युग का सूत्रपात है। साक्षात् भगवान शिव जिनका स्वरूप अर्द्धनारीश्वर भी है तो दूसरी ओर जिनकी स्तुति किन्नर भी करते हैं उनकी नगरी में किन्नर समुदाय को संतों का सम्मान मिलना बेहद अच्छा है।

यही नहीं आधुनिकरूप में भी सुप्रीम कोर्ट ने किन्नरों अन्य लोगों की ही तरह समान अधिकार देने की बात कही है। ऐसे में यह सिंहस्थ उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस सिंहस्थ में लोगों के आकर्षण का केंद्र एक बार फिर नागा साधु होंगे। वे नागा साधु जो हिमलाय की कंदराओं में निवास करते हैं और आमतौर पर अपनी तपस्या में ही लीन होते हैं जिनका आम जनजीवन से कोई लगाव नहीं होता।

वे अपने बारह वर्षों की तपस्या को पूर्ण करने और सिद्ध करने के लिए सिंहस्थ जैसे पवित्र आयोजनों में स्नान करते हैं। ऐसे साधु बिरले होते हैं इनकी साधनाऐं, इनका जीवन सदियों से लोगों को आकर्षित करता है। इनके आशीर्वाद से श्रद्धालुओं का भला हो जाता है। मगर इस बार सिंहस्थ में कुछ ऐसे संतों का डेरा भी हो गया है जिन्हें तथाकथित रूप से संत कहा जा रहा है। 

जिनपर यौन दुष्कर्म जैसे आरोप हैं। मगर लहर - लहर लहराती केसरिया ध्वज पताका में सबकुछ चलता है। साधुओं के शोर के साथ शिप्रा और नर्मदा के संगम पर घाटों के किनारों पर बने मंदिरों से आती घंटियों की ध्वनियां लोगों को पवित्रता का अहसास करवाती हैं। सिंहस्थ का आयोजन देखकर ऐसा लगता है जैसे सभी 21 वीं सदी से 16 वीं सदी में पहुंचकर एक बड़े धार्मिक आयोजन का आनंद ले रहे हैं। एक ऐसा आयोजन जहां पवित्र संगम में डुबकी लगाते ही सारे भेद मिट जाते हैं आत्मा और परमात्मा एकाकार हो जाता है और फिर केवल और केवल शांति का अनुभव होता है। 

 

 

 

 

 

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