संता बंता और कविता
संता बंता और कविता
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tyle="text-align:justify">संता- बंता, मैं जो कविता अब सुनाने जा रहा हूं उसका शीर्षक है 'आग,पानी और धुआँ।' 
बंता- तो एक शब्द में क्यों नहीं बोलता कि हुक्का है।
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संता सड़क पर जा रहा था रास्ते में केले के छिलके पड़े थे संता देख नहीं पाया और फिसल गया। ऐसा कई बार हुआ थोड़ा आगे चलने पर एक और छिलका पड़ा हुआ था। इस बार संता ने पहले ही देख लिया और बोला.....ओफ्फो... अब फिर से गिरना पड़ेगा।
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संता भाई वो देख आजकल मुझसे बहुत अच्छे से बात कर रही है..! 
बंता- पागल Block कर उसे, रक्षाबंधन आने वाला है।

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