क्या आप जानतें है की वास्तु शास्त्र में दिशा का कितना महत्व होता है?
क्या आप जानतें है की वास्तु शास्त्र में दिशा का कितना महत्व होता है?
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वास्तुशास्त्र में पश्चिम दिशा
पश्चिम दिशा का स्वामी वरूण देव हैं.भवन बनाते समय इस दिशा को रिक्त नहीं रखना चाहिए.इस दिशा में भारी निर्माण शुभ होता है.इस दिशा में वास्तुदोष होने पर गृहस्थ जीवन में सुख की कमी आती है.पति पत्नी के बीच मधुर सम्बन्ध का अभाव रहता है.कारोबार में साझेदारों से मनमुटाव रहता है.यह दिशा वास्तुशास्त्र की दृष्टि से शुभ होने पर मान सम्मान, प्रतिष्ठा, सुख और समृद्धि कारक होता है.पारिवारिक जीवन मधुर रहता है.

वास्तुशास्त्र में वायव्य दिशा 
वायव्य दिशा उत्तर पश्चिम के मध्य को कहा जाता है.वायु देव इस दिशा के स्वामी हैं.वास्तु की दृष्टि से यह दिशा दोष मुक्त होने पर व्यक्ति के सम्बन्धों में प्रगाढ़ता आती है.लोगों से सहयोग एवं प्रेम और आदर सम्मान प्राप्त होता है.इसके विपरीत वास्तु दोष होने पर मान सम्मान में कमी आती है.लोगो से अच्छे सम्बन्ध नहीं रहते और अदालती मामलों में भी उलझना पड़ता है.

वास्तुशास्त्र में उत्तर दिशा 
वास्तुशास्त्र में पूर्व दिशा के समान उत्तर दिशा को रिक्त और भार रहित रखना शुभ माना जाता है.इस दिशा के स्वामी कुबेर हैं जो देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं.यह दिशा वास्तु दोष से मुक्त होने पर घर में धन एवं वैभव में वृद्धि होती है.घर में सुख का निवास होता है.उत्तर दिशा वास्तु से पीड़ित होने पर आर्थिक पक्ष कमज़ोर होता है.आमदनी की अपेक्षा खर्च की अधिकता रहती है.परिवार में प्रेम एवं सहयोग का अभाव रहता है.

वास्तुशास्त्र में ईशान दिशा 
उत्तर और पूर्व दिशा का मध्य ईशान कहलाता है.इस दिशा के स्वामी ब्रह्मा और शिव जी हैं.घर के दरवाजे और खिड़कियां इस दिशा में अत्यंत शुभ माने जाते हैं.यह दिशा वास्तुदोष से पीड़ित होने पर मन और बुद्धि पर विपरीत प्रभाव होता है.परेशानी और तंगी बनी रहती है.संतान के लिए भी यह दोष अच्छा नहीं होता.यह दिशा वास्तुदोष से मुक्त होने से मानसिक क्षमताओं पर अनुकूल प्रभाव होता है.शांति और समृद्धि का वास होता है.संतान के सम्बन्ध में शुभ परिणाम प्राप्त होता है.

वास्तुशास्त्र में आकाश 
वास्तुशास्त्र के अनुसार भगवान शिव आकाश के स्वामी हैं.इसके अन्तर्गत भवन के आस पास की वस्तु जैसे वृक्ष, भवन, खम्भा, मंदिर आदि की छाया का मकान और उसमें रहने वाले लोगों के ऊपर उसके प्रभाव का विचार किया जाता है.

वास्तुशास्त्र में पाताल 
वास्तु के अनुसार भवन के नीचे दबी हुई वस्तुओं का प्रभाव भी भवन और उसमें रहने वाले लोगों के ऊपर होता है.यह प्रभाव आमतौर पर दो मंजिल से तीन मंजिल तक बना रहता है.भवन निर्माण से पहले भूमि की जांच इसलिए काफी जरूरी हो जाता है.वास्तुशास्त्र के अनुसार इस दोष की स्थिति में भवन में रहने वाले का मन अशांत और व्याकुल रहता है.आर्थिक परेशानी का सामना करना होता है.अशुभ स्वप्न आते हैं एवं परिवार में कलह जन्य स्थिति बनी रहती है।

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