जानिए आखिर क्या है काली पड़ती गंगा के पीछे की वजह?
जानिए आखिर क्या है काली पड़ती गंगा के पीछे की वजह?
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वाराणसी: उत्तर प्रदेश के वाराणसी के गंगा किनारे नगवां क्षेत्र में गंगोत्री विहार कॉलोनी के लगभग 10 मकानों के क्षतिग्रस्त होने के कारण पंपिंग स्टेशन की पाइप लाइन को माना जाता है। यह लाइन गंगा में गिरने वाले अस्सी नाले को टैप करके वाराणसी के रमना सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाती है। इसके अतिरिक्त पंपिंग स्टेशन के बंद हो जाने के चलते तकरीबन 70 एमएलडी अस्सी नाले के सीवेज का 4 दिनों से गंगा में गिरने से नदी भी काली पड़ती जा रही है। इन सब के लिए पर्यावरणविद ने गलत डिजाइन तथा मानक के विपरीत पंपिंग स्टेशन तथा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को बनाया जाना बताया है तथा गंगा को अभी भी मौजूदा वक़्त में प्रदूषणयुक्त ठहराया है। वही प्रोफेसर मिश्र ने आगे बताया कि पंपिंग स्टेशन से लेकर रमना एसटीपी तक डाली गई पाइप की ना तो पाइलिंग उचित तरिके से की गई है तथा ना ही पिचिंग ही ठीक से की गई है। इसी कारण पाइप मिट्टी में धंस रहा है तथा पाइप में जहां भी जॉइंट है, वहां से पंप के चलते समय पानी लीकेज कर रहा है तथा मिट्टी धंस रही है। यह तो बड़ा ही जनरल फिनोमिना है। आसपास के घरों में क्रेक आ चुके हैं तथा फर्स भी धंस रहे हैं। यह तो स्थानीय मसला है मगर गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के मकसद से जितने भी काम हो रहे हैं, उसके तहत अंडर कैपसिटी का पंप बनाया गया है। 

बैक्टीरिया को समाप्त करने का कोई तरीका नहीं:-
विशंभरनाथ मिश्र के अनुसार, जो STP प्लांट काम कर भी रहा है, वह पुरानी टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है जिसमें फिकल कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया को समाप्त करने का कोई तरीका नहीं है। इस प्रकार गंगा प्रदूषण मुक्त नहीं हो पाएगी। पंप बंद हो जाने से अब पूरा अवजल गंगा में सीधे गिर रहा है। जिसके चलते गंगा का पानी न सिर्फ काला होगा बल्कि सारे पैरामीटर भी गड़बड़ हो जाएंगे। फिकल पॉलीफॉर्म काउंट भी बढ़ जाएगा। यह दिक्कत इस प्रकार समाप्त होने वाली नहीं। 

गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के 3 टिप्स :-
यदि गंगा को प्रदूषण मुक्त करना है तो इसके 3 चरण हैं- प्रथम उचित तरीके से इंटरसेक्शन, दूसरा डायवर्जन तथा फिर एसटीपी में फिकल पॉलीफॉर्म बैक्टीरिया को समाप्त करके पानी को रीयूज करिए या तो फिर डाउनस्ट्रीम में डाल दीजिए। अभी अपस्ट्रीम में फिकल कोलीफॉर्म 40 से 50 हजार प्राप्त होगा जो कि गर्मी में एक लाख तक चला जाता है। जबकि स्टैंडर्ड के लिए बोला गया है कि हंड्रेड एमएल में इसका काउंट 500 के भीतर होना चाहिए। इसलिए प्रॉपर इंटरसेप्शन, डायवर्जन तथा नवीनतम टेक्नोलॉजी का उपयोग करना बहुत आवश्यक है।

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