बनारस को अब तक नहीं मिला उम्मीदों का घाट
बनारस को अब तक नहीं मिला उम्मीदों का घाट
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वाराणसी : बनारस भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और नरेंद्र मोदी के लिए लोकसभा चुनाव-2014 में सत्ता की 'प्रयोगशाला' रहा है। यहां अविरल बहती गंगा की लहरोंके साथ वादे, सपने और उम्मीदें अब भी तैर रही हैं, किनारा नहीं मिला है। मोदी सरकार का साल लगने जा रहा है, मगर सांसद मोदी के दिखाए सपनों को अभी वह घाट नहीं मिला है, जहां गंगा की आरती के साथ जश्न मने और मोदी सरकार की जय-जयकार हो। प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र काफी मायने रखता है, देखते-देखते 12 महीने हो चले, इस अवधि में यहां क्या-क्या बदलाव आया, आइए जानते हैं चंद विद्वज्जनों से.. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और जाने-माने कथाकार डॉ. काशीनाथ सिंह इस संदर्भ में कहते हैं, "अभी तक कुछ नहीं हुआ। सालभर तक सिर्फ प्रतिनिधिमंडल बनारस से क्योटो और क्योटो से बनारस आते-जाते रहे हैं। क्या कुछ होने वाला है, उसका कोई खाका सामने नहीं आया है।"

बनारस की संस्कृति में पकी-पगी कहानियां लिखने के लिए चर्चित अक्खड़ बनारसी साहित्यकार काशीनाथ ने कहा, "क्योटो धार्मिक नगरी है, लेकिन काशी सिर्फ धार्मिक नगरी नहीं है। यह संस्कृति में गहराई तक धंसी नगरी है। यह बदलाव बहुत मुश्किल से स्वीकार करती है। स्वाभाव के अनुकूल हुआ तभी, अन्यथा स्वभाव के प्रतिकूल बदलाव को खारिज भी कर देती है।" चर्चित पुस्तक 'काशी का अस्सी' के रचयिता डॉ. काशीनाथ ने कहा, "हां, मोदी सरकार के सालभर के दौरान धार्मिक कर्मकांड जरूर बढ़ा है।"

सिंह का इशारा संघ परिवार द्वारा शुरू किए गए तथाकथित घर वापसी अभियान की ओर था। प्रगतिशील कवि, पूर्व आईपीएस अधिकारी ज्ञानेंद्रपति भी मानते हैं कि अभी सपनों और उम्मीदों के अलावा बनारस में जमीन पर कुछ खास नहीं उतरा है। उन्होंने कहा, "सालभर के दौरान मोदी ने कुछ करने के बजाय उम्मीदों को ही और बढ़ाया है।" ज्ञानेंद्रपति ने कहा, "नागरिक सुविधाएं खस्ताहाल हैं, बुनकरों, बेरोजगारों में असंतोष है। गंदगी जस की तस है। थोड़ा बहुत जो बदलाव आया है, उसमें स्थानीय लोगों की भूमिका है। कुछ गुजरातियों ने पहल की है। लेकिन प्रधानमंत्री स्तर का कोई काम बनारस में नहीं हुआ, न उसकी कोई रूपरेखा ही दिखाई देती है।"

मोदी ने चुनाव के दौरान काशी को विश्वस्तरीय शहर बनाने, गंगा को अविरल, स्वच्छ करने, बुनकरों, बेरोजगारों के लिए रोजगार के वादे किए थे। द्वारकापीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी और वाराणसी के विद्या मठ के महंत, स्वामी अविमुक्ते श्वरानंद कहते हैं कि अभी तक बनारस में मोदी का 'म' भी जमीन पर नहीं उतरा है। काशी की दशा से चिंतित और नाराज अविमुक्ते श्वरानंद ने आईएएनएस से कहा, "काशी इस समय बहुत मुश्किल में है और यहां का जनप्रतिनिधि दुनिया में घूम-घूमकर सेल्फी खींचने में व्यस्त है।" उन्होंने कहा, "बनारस को क्योटो, सेंटियागो और क्या-क्या बनाने की बातें हो रही हैं। लेकिन काशी बचेगी या नहीं, यह गंभीर चिंता का विषय है। आज काशी पर संकट आ गया है।"

मोदी के सालभर के काम के बारे में उन्होंने कहा, "बनारस में मोदी का 'म' भी जमीन पर नहीं उतरा है। शहर गंदगी से बजबजा रहा है, गंगा बदहाल है। हां, सुनने में आया है कि करोड़ों रुपये आ गए हैं, अब वे रुपये किसलिए आए हैं, सभी जानते हैं, क्योंकि रुपये पहले भी आते रहे हैं।" गंगा आंदोलन की अगुआई कर चुके अविमुक्ते श्वरानंद ने कहा, "इस सरकार ने गंगा की निर्मलता पर निशाना साधा है, जिसमें भारी धनराशि का प्रावधान हो सके। गंगा की अविरलता को स्पर्श नहीं किया, जिसमें बिल्कुल धन की जरूरत नहीं। यानी सरकार को गंगा की सफाई नहीं, खजाने की सफाई करनी है। अविरलता से गंगा अपने आप साफ हो जाती।"

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर, जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक आनंद दीपायन भी मानते हैं कि वाराणसी को देखकर नहीं लगता कि यह प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है। उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री के नाते बनारस में अभी तक कुछ नहीं हुआ। जो कुछ भी हुआ, या हो रहा है, वह पिछली सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन भर है।" प्रो. दीपायन ने कहा, "उदारीकरण के कारण बनारस के परंपरागत रोजगार खत्म हो गए हैं। गंगा खत्म हो गई है। ये सारी चीजें कैसे ठीक होंगी, इसका कोई खाका अभी तक नहीं दिखाई देता।"

उन्होंने कहा, "शहर के लिए क्योटो प्रोटोकॉल है, लेकिन उसका कोई खाका सामने नहीं आया है। गांवों के लिए तो अभी तक कुछ नहीं है। गांवों के लिए कम से कम न्यूनतम सुविधाएं निर्धारित हों, शहर भी तभी बचेगा। सिर्फ उम्मीदें हैं, लेकिन उम्मीद भी तभी की जा सकती है, जब नीतिगत पहल दिखाई दे। अलबत्ता धार्मिक कर्मकांड बढ़ा है, वह दिखाई भी देता है।" दीपायन ने कहा, "नेता और सरकारें चिटफंड कंपनियों की तरह हो गई हैं। चुनाव से पहले वादे होते हैं, लेकिन जीतने के बाद वादों पर अमल नहीं होता।"

उल्लेखनीय है कि नरेंद्र मोदी ने पिछले आम चुनाव में वाराणसी और वड़ोदरा, दोनों संसदीय सीटों से जीत दर्ज की थी। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी की वाराणसी से उम्मीदवारी के कारण उत्तर प्रदेश और पड़ोसी बिहार की बाकी सीटों पर भी व्यापक असर हुअा था और भाजपा केंद्र में दो-तिहाई बहुमत के साथ सरकार बनाने में सफल हुई थी।

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