जिंदगियां मलबे में दबाने को आतुर, पटना का महात्मा गांधी सेतु
जिंदगियां मलबे में दबाने को आतुर, पटना का महात्मा गांधी सेतु
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पटना : वाराणसी में निर्माणाधीन पुल गिरने और उसमे दबकर 18 लोगों के मारे जाने के बाद देशभर में बन रहे या पुराने पुलों को लेकर बहस छिड़ गई है. बिहार की राजधानी पटना के गांधी सेतु को कभी एशिया में सबसे लंबा सड़क पुल होने का तमगा हासिल था जो आज बस किसी ऐसे ही हादसे का गवाह बनने को खड़ा है. यह पुल पटना से पूरे उत्तर बिहार को जोड़ता है. साढ़े 6 किमी लंबा महात्मा गांधी सेतु 1982 में बना था. तब इस पर महज 81 करोड़ की लागत आई थी. तब यह एशिया का सबसे बड़ा पुल था. पर अब हजारों लोग डर और घंटों जाम के बीच इस पुल से यात्रा कर रहे हैं. यहां पुल कि इतनी जरूरत है कि एक साल पहले इसी समानांतर एक पुल बना. इसे दीघा सड़क पुल कहते हैं. पर दीघा पुल से बसों और दूसरे यात्री वाहनों के गुजरने की मनाही है. दीघा पुल से सिर्फ निजी चार पहिया गाड़ियां गुजर सकती हैं. इस हालत में बस, ऑटो, जीप जैसी सवारी गाड़ियां मजबूरन निर्माणाधीन पुल से गुजरते हैं.

पिछले एक दशक से गांधी सेतु के मरम्मत का काम चल रहा, पर अभी तक पूरा नहीं हुआ है. यह पुल प्री-स्ट्रेसिस टेक्नोलॉजी पर बना है. एक के बाद एक हुए कई समीक्षाओं में यह बात सामने आई कि ये उपयुक्त टेक्नोलॉजी नहीं थी. दूसरी बात यह कि पुल बनने के बाद इसका समुचित रख-रखाव नहीं हो पाया. पहली स्टडी 1998-99 में की गई थी, जब कुछ दरार नजर आने लगी थी. स्टडी स्तूप कंसल्‍टेंट्स ने किए. उसकी सिफारिशों के बाद 6-7 और स्टडी हो चुकी हैं.

लोग बताते हैं कि पुल बनने के 13-14 साल बाद से ही समस्‍याएं शुरू हो गई थीं. बहरहाल देश के कई जर्जर हो चुके पुलों की तरह शायद ये भी किसी हादसे की बाट जोह रहा है और कुछ सस्ती इंसानी जिंदगियों को अपने मलबे के तले दबाने के बाद जीर्णोद्धार या नवनिर्माण की ओर बढ़ेगा .

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