जयंती विशेष: 84 शिष्यों के गुरु 'वल्लभाचार्य', की थी इन प्रसिद्द ग्रंथों की रचना
जयंती विशेष: 84 शिष्यों के गुरु 'वल्लभाचार्य', की थी इन प्रसिद्द ग्रंथों की रचना
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भारतीय संस्कृति और भारतीय इतिहास में वल्लभाचार्य का एक महत्वपूर्ण स्थान है. उन्होंने सगुण और निर्गुण भक्ति धारा के दौर में अपना दर्शन खुद गढ़ा था, लेकिन उसके मूल सूत्र वेदांत में ही निहित हैं. आज ही के दिन उनका जन्म छत्तीसगढ़ के रायपुर के पास चंपारण्य में 1478 में हुआ था. उनका अधिकतम समय पवित्र नगरी काशी, प्रयाग और वृंदावन में ही बीता. वल्लभाचार्य की माता का नाम इलम्मागारू था और उनकी पत्नी का नाम महालक्ष्मी था. गोपीनाथ और श्रीविट्ठलनाथ नमक उनके दो पुत्र थे.

कहा जाता है कि काशी में ही उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई और वहीं उन्होंने अपने मत का उपदेश भी दिया था. रुद्र संप्रदाय के विल्वमंगलाचार्यजी द्वारा इन्हें अष्टादशाक्षरगोपालमंत्र की दीक्षा मिली थी और त्रिदंड संन्यास की दीक्षा स्वामी नारायणेन्द्रतीर्थ से उन्हें प्राप्त हुई. 

कहा जाता है कि सूरदास, कृष्णदास, कुम्भनदास और परमानन्द दास समेत उनके कुल 84 शिष्य थे. उनके प्रसिद्द ग्रंथों में ब्रह्मसूत्र पर अणुभाष्य इसे ब्रह्मसूत्र भाष्य अथवा उत्तरमीमांसा कहते हैं, श्रीमद् भागवत पर सुबोधिनी टीका और तत्वार्थदीप निबंध है और इनके अलावा भी उनके अनेक ग्रंथ मिलते हैं. महज 52 वर्ष की अल्प आयु में ही उन्होंने सन 1530 में काशी में हनुमानघाट पर गंगा में प्रविष्ट होकर जल-समाधि ले ली थी.

 

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