आज है वल्लभाचार्य जयंती, यहाँ जानिए उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
आज है वल्लभाचार्य जयंती, यहाँ जानिए उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य
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आज 18 अप्रैल है और आज ही वल्लभाचार्य जयंती है. आप सभी को बता दें कि हिन्दू पंचांग के अनुसार, वल्लभाचार्य जी का जन्म वैशाख मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन हुआ था. कहा जाता है इसी वजह से हर साल इस एकादशी के दिन उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है. जी दरअसल उनके जन्मोत्सव पर भगवान श्रीकृष्ण जी की विशेष आराधना की जाती है. आप सभी को बता दें कि वल्लभाचार्य जी स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे और वल्लभाचार्य जी को स्वयं भगवान श्रीनाथ का स्वरूप माना जाता है.

अब आज हम आपको बताने जा रहे हैं उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में. आप सभी को बता दें कि वल्लभाचार्य जी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनकी माता का नाम इल्लमागारू और पिता का नाम लक्ष्मण भट्ट था. कहते है कि वल्लभाचार्य जी का जन्म माता इल्लमागारू के गर्भ से अष्टमास में हुआ था. जी दरअसल उन्हें मृत जानकर उनके माता पिता ने छोड़ दिया था और यह सब होने के बाद श्री नाथ जी माता इल्लमागारू के सपने में आए और कहा कि जिस शिशु को तुम मृत जानकर छोड़ आए हो वह जीवित है.

उन्होंने कहा वह स्वंय ही श्री नाथ जी हैं जिन्होंने आपके गर्भ से जन्म लिया है जिसके बाद वल्लभाचार्य जी के माता पिता फिर से उसी स्थान पर गए और देखा कि अग्निकुंड के बीच में वह अंगूठा चूस रहे थे. आप सभी को बता दें कि वल्लभाचार्य का चिंतन आदि शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत के उलट समझा जाता है, जिसके अनुसार संसार मिथ्या है, उसका कोई अस्तित्व नहीं है. कहते हैं वह केवल होने का आभास देता है और वल्लभाचार्य का दर्शन अस्तित्व और अस्तित्वहीन की लड़ाई में न पड़कर संसार को खेल, तो परमात्मा को खिलाड़ी मानता है. वहीं अपने इन सिद्धांतों की स्थापना के लिए वल्लभाचार्य ने तीन बार भारत का भ्रमण किया. यह यात्राएं सिद्धांतों के प्रचार के लिए थीं और करीब 19 वर्षों में पूरी हुई. आप सभी को यह भी बता दें कि वल्लभाचार्य ने अनेक ग्रन्थों और स्तोत्रों की रचना की. उन्होंने काशी के हनुमान घाट पर अपने दोनों पुत्रों गोपीनाथजी और विट्ठलनाथजी को अपने प्रमुख भक्त दामोदरदास हरसानी एवं अन्य वैष्णवजनों की उपस्थिति में अंतिम शिक्षा दी. उसके बाद करीब 40 दिन तक वह निराहार रहे, मौन धारण कर लिया और आषाढ़ शुक्ल 3 संवत 1587 को जल समाधि ले ली.

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