यहां स्वतंत्रता के बाद न तो मतदाता बने, न ही मिला कोई अधिकार
यहां स्वतंत्रता के बाद न तो मतदाता बने, न ही मिला कोई अधिकार
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आप सुनकर चौंक जाएंगे कि आधुनिकता के इस समय में एक गांव ऐसा भी है, जहां मकान तो पक्के हैं, किन्तु सड़कें सारी कच्ची हैं। स्वतंत्रता के पूर्व टोंगिया पद्धति से वनों की परवरिश करने के लिए बसाए गए इस गांव का नाम भी हरिपुर टोंगिया हो गया, किन्तु वन ग्राम के तौर पर दर्ज इस गांव के लोग देश की स्वतंत्रता के पश्चात् भी मूल अधिकारों से वंचित हैं। हालांकि, अब शासन की तरफ से इन्हें अधिकार देने की प्रक्रिया आरम्भ हो गई है। इससे ग्रामीणों को कुछ आशाएं जगी हैं।

अंग्रेजी हुकूमत में साल 1930 में वन अधिकार अधिनियम निर्धारित हुआ था। इसके पश्चात् टोंगिया पद्धति से वन इलाकों में पौधे लगाने एवं पेड़-पौधों की परवरिश के लिए आसपास के ग्रामीणों को वनों में बसाया गया। इसी के चलते बुग्गावाला क्षेत्र में शिवालिक की पहाड़ियों में भी मुनादी कराकर मजदूरी कर गुजर बसर करने वालों को यहां बसाया गया। टोंगिया पद्धति से वनीकरण में मदद करने वाले इन व्यक्तियों को जहां बसाया गया, उसका नाम हरिपुर टोंगिया हो गया। 

वही यहां लोगों को दस-दस बीघा भूमि भी दी गईं, जिस पर ग्रामीणों को तीन-तीन मीटर की दूरी पर वृक्ष लगाने थे। वन रेंजर रामसिंह कहते हैं कि जब ग्रामीणों को यहां बसाया गया तो पहले वर्ष अपने अनुसार खेती की छूट दी गई। दूसरे वर्ष तीन-तीन मीटर की दूरी पर पेड़ उगाने के लिए बीज दिए गए। इन तीन मीटर के मध्य की दूरी में किसान अपने लिए फसल उगाकर व्यतीत करते थे।

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