ै समुंदर सामने प्यासे भी हैं पानी भी है
तिश्नगी कैसे बुझाएँ ये परेशानी भी है
हम मुसाफ़िर हैं सुलगती धूप जलती राह के
वो तुम्हारा रास्ता है जिस में आसानी भी है
अपना हम-साया है लेकिन फ़ासला बरसों का है
ऐसी क़ुर्बत इतनी दूरी जिस में हैरानी भी है
ज़िंदगी भर हम सराबों की तरफ़ चलते रहे
अब जहाँ थक गिरे हैं उस जगह पानी भी है