ओडिशा के पुरी में स्थित प्रतिष्ठित जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ की पूजा उनके भाई-बहन सुभद्रा और बलराम के साथ की जाती है। हालाँकि, इस पवित्र मंदिर में एक और देवता का भी बहुत महत्व है - देवी बिमला। उन्हें मंदिर के अनुष्ठानों का एक अभिन्न अंग माना जाता है और भगवान जगन्नाथ के समान ही उनकी पूजा की जाती है।
देवी बिमला को भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती का अवतार माना जाता है और उन्हें भगवान विष्णु की बहन भी माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वह जगन्नाथ मंदिर की अधिष्ठात्री देवी हैं और उनका भगवान जगन्नाथ से विशेष संबंध है। भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया जाने वाला पवित्र भोग सबसे पहले देवी बिमला को चढ़ाया जाता है और उसके बाद ही भगवान इसे स्वीकार करते हैं।
इस अनुष्ठान के पीछे की कहानी पौराणिक कथाओं में छिपी हुई है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ का भोग देवी लक्ष्मी ने स्वयं तैयार किया था, और यह इतना दिव्य था कि नारद मुनि भी इसे चखने के लिए लालायित हो गए थे। हालाँकि, देवी लक्ष्मी ने उन्हें चेतावनी दी कि यदि उन्होंने भोग का रहस्य किसी को बताया, तो इसका महत्व समाप्त हो जाएगा। नारद मुनि खुद को रोक नहीं पाए और उन्होंने भगवान शिव सहित अन्य देवताओं को यह रहस्य बताया, जो भोग से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने नृत्य करना शुरू कर दिया। इससे देवी पार्वती प्रसन्न हुईं, जिन्होंने तब भगवान शिव से भोग को अपने साथ साझा करने का अनुरोध किया। हालाँकि, तब तक भोग खाया जा चुका था, और देवी पार्वती निराश हो गईं।
क्रोध में आकर देवी पार्वती ने श्राप दिया कि अब से भोग सभी को मिलेगा, न कि केवल देवताओं को। भगवान जगन्नाथ ने स्थिति को समझते हुए, पहले देवी बिमला को भोग अर्पित करने और फिर स्वयं ग्रहण करने के लिए सहमति व्यक्त की। यह अनुष्ठान आज भी जारी है, जिसमें भगवान जगन्नाथ द्वारा ग्रहण किए जाने से पहले भोग देवी बिमला को अर्पित किया जाता है।
जगन्नाथ मंदिर में देवी बिमला का महत्व बहुत अधिक है, और भक्तगण उनकी पूजा बहुत उत्साह से करते हैं। भगवान जगन्नाथ के साथ उनका जुड़ाव और मंदिर के अनुष्ठान उन्हें मंदिर के आध्यात्मिक स्वरूप का अभिन्न अंग बनाते हैं। देवी बिमला की कहानी हमें साझा करने के महत्व और हमारी आध्यात्मिक यात्रा में अनुष्ठानों के महत्व की याद दिलाती है।
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