भारत- सिर्फ नार्यस्तु संग दुष्कर्मे, क्योंकि रमन्ते सर्वत्र दुर्जनः
भारत- सिर्फ नार्यस्तु संग दुष्कर्मे, क्योंकि रमन्ते सर्वत्र दुर्जनः
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                                                   कल का भारत - ''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:''
                                          आज का भारत - सिर्फ नार्यस्तु संग
दुष्कर्मे
, क्योकि रमन्ते सर्वत्र दुर्जनः 


अखबारों के सुर्ख लाल पन्ने चीख चीख कर देश का हाल बयान कर रहे है. लहू का ये लाल रंग खंजरों की करामात नहीं है. इस बार रक्त रंजीत भारत भूमि के गुनहगार दरिंदो की वो सोच है जिसने हैवानियत और हवस के हाथों गुलाम हो कर शैतानों के कारनामो को भी पीछे छोड़ दिया है. आज स्त्री की आबरू से खेलने का जो शौक इंसानी दिमाग पर हावी है, ऐसा तो शायद राक्षसी राज में भी नहीं रहा होगा. क्योकि मेरा यकीन है कि दानव भी अपने ईमान के पक्के रहे होंगे और राक्षसों के भी कुछ उसूल, मर्यादाएं और दायरे रहे होंगे. आज महिलायें कहा जाये. घर के भीतर बाप, भाई, ससुर, देवर में से कौन उस पर नज़रे गड़ाए बैठा है ये तो कल का अख़बार ही बताएगा. ऑफिस में बॉस, स्कूल में शिक्षक, मंदिर के पुजारी, मस्जिद के मौलाना, गुरूद्वारे की प्रबंधन समिति, बस में पास में बैठा बुजुर्ग, दूधवाला, सब्जीवाला, पेपर वाला, मोहल्ले का दादा, नेताओं का कोई रिश्तेदार, भाभी का भाई, पुराना दोस्त, पति का कोई करीबी कौन कहा कहा माँ बहनो के साथ ज्यादती नहीं कर रहा है.

खबरों में आ कर बदनामी के डर से अपनों के बीच बैठ कर अँधेरे कोनो में सिसकती हजारों निर्भया और आसिफा गुमनामी में ही अपना दम तोड़ चुकी है और जो कुछ बच गई है वो जंगलो में बिना लिबास के, सड़कों के किनारे औंधे मुँह पड़ी है और उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट अमूमन एक सी है. एक सा है उनका हश्र. हश्र मतलब जांच, आश्वासन, मुआवजा और कड़ी निंदा . हवस के पुजारी ये भी जानते है कि इस मुल्क में पैसा और पावर जिसके पास है उसे कोई छू भी नहीं सकता. पैसा, नेता और पुलिस को मिलाकर बड़े से बड़ा काम किया जा सकता है. सरकार और पुलिस कुछ नहीं कर पा रही है या करना नहीं चाह रही है. जिम्मेदार भी बस एक शानदार भाषण देकर कर्तव्य निभा रहे है और घर जा कर उन्ही दरिंदो के साथ शाम रंगीन कर रहे है. बिना मिली भगत कुछ भी संभव नहीं है.

समाज भी इन्हे बस सुबह कि सुर्खियां मान कर पड़ रहा है. संजीदगी का दिल दिमाग से ज्यादा नाता नहीं रहा है. हृदय विदारक घटनाएं भी अब सिर्फ एक खबर लगती है और दिल तक दस्तक नहीं देती. ज्यादा से ज्यादा कुछ देर बातचीत जरूर कर ली जाती है और उस बातचीत का अंत एक वाक्य से होता है, ''बहुत बुरा हुआ कोई कुछ करता क्यों नहीं''. हम फिर लग जाते है अपने काम में और अगले दिन दर्ज आकड़ों को बढाती दर्जनों घटना होगी. हमारा मन नहीं दुखता. मन दुखता है तो सिर्फ अपने छालों पर, तो क्या हम अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए इतने पत्थर दिल हो गए है कि हमें दुसरो के दर्द का एहसास ही नहीं रहा है. आठ माह की बच्ची और उसका सगा भाई, बहु के साथ पिता समान ससुर, अपनी ही बेटी के साथ पिता, आठवीं की छात्रा के साथ शिक्षक, जवान बहन के साथ भाई , इन खबरों की पुनरावृत्तियों ने इन्हे आम खबर बना दिया है. इनका आम हो जाना इस बात का भी सबूत है की दरिंदो के हौसले बढ़ रहे है. सरकार, पुलिस और जिम्मेदार लोग सिर्फ आकड़ों को दुरुस्त कर रहे है.

हालत बेकाबू हो चले है और इन्हे अब एक ही तरीके से काबू में किया जा सकता है और वो है ईश्वर का अवतार क्योकि अब इंसान के बस की बात नहीं रही की अब वे कुछ कर पाए. शायद वो कुछ करना भी नहीं चाहते उनकी अपनी मज़बूरी है. इंसान सत्ता में है वो किसका साथ दे. यदि गुनाहगारो को सजा दे तो एक बड़े समाज के वोट बैंक को नाराज करने का खतरा है और देश की सहानुभूति पा चूकि पीड़िता को नाराज करे तो भी खतरा कम नहीं है. ऐसे में तीसरा रास्ता अपनाया जाता है, जांच बिठा दी जाये, कमिटी गठित हो और मामले को ठंडा होने दिया जाये, जनता की कमजोर याददाश्त पर उन्हें पूरा यकीन है. इन सब के बीच हम और आप फिर बाट जोह रहे होते है एक नए मामले की जो कुछ दिन सुर्खियों में रह कर खुदबखुद दफ़न हो जायेगा.

मगर दफ़न सिर्फ लाशे होती है, रूहें नहीं. ये सभी रूहें अपने लिए इंसाफ मांगने को इकठ्ठा होगी और ईश्वर, अल्लाह, जीजस या वाहेगुरु से कहेगी की आप में कोई भी फिर से धरती पर जन्म लेकर इस हैवानियत के सिलसिले को खत्म करे.

क्योकि '' यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत......................

 

 

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