जाने क्या है चूड़ियों का पारंपरिक महत्व
जाने क्या है चूड़ियों का पारंपरिक महत्व
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महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए चूडियां पहनती हैं एवं इन्हें भाग्य एवं समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. परंपरागत रूप से चूडियों का टूटना अशुभ माना जाता है. देश के विभिन्न राज्यों के लोग इन चूडियों को अलग-अलग नामों से बुलाते हैं.

लेकिन, इन भौगोलिक सीमाओं के बावजूद भारतीय शादियों में इनका महत्व एक समान है. 

चूड़ियों का पारंपरिक महत्व 

हर क्षेत्र में इन चूडियों को पहनाने की परंपरा अनूठी है. नवविवाहित स्त्री को चूडियां इसलिए पहनाई जाती हैं ताकि उसकी आने वाली जिंदगी प्यार व स्नेह से भरी रहे. अतः पहनाते वक्त चूडियां ना टूटें इसका खास ख्याल रखा जाता है. 

 दक्षिण भारत -दक्षिण भारत में सोने को बेहद शुभ माना गया है. कुछ समुदायों के लोग, दुल्हन के होथों में सोने की चूडियों सहित हरे कांच की चूडियां पहनाते हैं क्योंकि हरा रंग उर्वरता व समृद्धि का प्रतीक है. 

बंगाली शादी -बंगाली शादियों में, दुल्हन को सीपों से बनी मूंगिया रंग की चूडियां पहनाई जाती हैं. इन चूडियों को स्थानीय लोग शाखा व पोला कहते हैं. इसके अलावा, जब दुल्हन अपने ससुराल में प्रवेश करती है तो सास बहू को लोहे की चूडी देती है जिस पर सोने का पानी चढा होता है. 

राजस्थानी एवं गुजराती -राजस्थानी एवं गुजराती शादियों में, दुल्हन को हाथी के दांतों से बना चूडा पहनाया जाता है. गुजराती शादियों में, मामेरू की रसम पर लड़की का मामा लड़की को लाल बॉर्डर वाली रेशमी साड़ी के साथ चूडा देता है. 

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