अब किसी भी मंदिर में नहीं दी जा सकेगी पशुबलि, हाई कोर्ट ने लगाई रोक
अब किसी भी मंदिर में नहीं दी जा सकेगी पशुबलि, हाई कोर्ट ने लगाई रोक
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अगरतला:  किसी भी जीव को चाहे वह मनुष्य हो या जानवर, जीवित रहने का मौलिक अधिकार है, तथा किसी भी धार्मिक परम्परा या अनुष्ठान की आड़ लेकर उसके प्राण लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है। किन्तु पशु बलि ऐसी ही एक अंधविश्वास भरी परम्परा है जिसमें किसी भी पशु चाहे वह गाय, भैंस या बकरी हो। इस उम्मीद से बलि दे दी जाती है कि उस पशु को देवता पर अर्पित करने से वह देवता प्रसन्न हो जाएंगे और बलि चढ़ाने वाले की सारी इच्छाएं पूरी हो जावेगी, लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा।

त्रिपुरा हाई कोर्ट ने प्रदेश के सभी मंदिरों में पशुओं या पक्षियों की बलि पर शुक्रवार को रोक लगा दी है। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति अरिंदम लोध की एक खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है। आदेश में कहा गया है, 'राज्य सहित किसी को भी राज्य के भीतर किसी भी मंदिर के प्रांगन में पशु/पक्षी की बलि देने की अनुमति नहीं होगी।'

पीठ ने सभी जिलाधिकारियों एवं पुलिस अधीक्षकों को इस आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए आदेश जारी कर दिया है। अदालत ने राज्य के मुख्य सचिव को दो प्रमुख मंदिरों-देवी त्रिपुरेश्वरी मंदिर एवं चतुरदास देवता मंदिर में तत्काल सीसीटीवी कैमरे लगवाने के भी निर्देश जारी किए हैं। क्योंकि इन दोनों मंदिरों में ही बड़ी संख्या में पशुओं की बलि दी जाती है।

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