सावन में यहाँ जानिए त्र्यंबकेश्वर से लेकर वैद्यनाथ तक की कहानी
सावन में यहाँ जानिए त्र्यंबकेश्वर से लेकर वैद्यनाथ तक की कहानी
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सावन का महीना बहुत पवित्र महीना माना जाता है और इस महीने में भोले का पूजन किया जाता है. ऐसे में इस समय भी सावन का पवित्र महीना चल रहा है और इस महीने में उनका पूजन करना बहुत लाभदायक माना जाता है. ऐसे में  उइस महीने में शिव कथा और उनकी महिमा का गुणगान किया जाना चाहिए. वहीं इस महीने में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के बारे में भी पढ़ना चाहिए. वहीं आज हम आपके लिए लेकर आए है दो ज्योतिर्लिंग की कथा जो आपको सुन्नी चाहिए.

*त्र्यंबकेश्वर- जी दरअसल यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के किनारे महाराष्ट्र के नासिक मे है और इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक निकट ब्रह्मागिरि पर्वत है. कहते हैं इसी पर्वत से गोदावरी नदी निकलती है और भगवान शिव का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है. ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान शिव को गौतम ऋषि व गोदावरी की प्रार्थनानुसार भगवान शिव इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए. त्र्यम्बकेश्वर की विशेषता है कि यहां पर तीनों ( ब्रह्मा-विष्णु और शिव ) देव निवास करते है जबकि अन्य ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ महादेव. मान्यता अनुसार भगवान शिव को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा.


*वैद्यनाथ - आपको बता दें कि श्री वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त ज्योतिर्लिंगों में खास स्थान है और भगवान वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर है, उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है.शिव पुराण में वर्णित कथानुसार एक बार राक्षस राज रावण ने अति कठोर तपस्या करके भगवान् शिव को प्रसन्न कर लिया . इसी के साथ जब भगवान् शिव ने रावण से वरदान मांगने के लिए कहा- तब रावण ने भगवान् शिव से लंका चलकर वही निवास करने का वरदान माँगा. भगवान् शिव ने वरदान देते हुए रावण के सामने एक शर्त रख दी कि शिवलिंग के रूप में मैं तुम्हारे साथ लंका चलूँगा लेकिन अगर तुमने शिवलिंग को धरातल पे रख दिया तो तुम मुझको पुनः उठा नहीं पाओगे. रावण शिवलिंग को उठाकर लंका की ओर चल पड़ा.

रास्ते में रावण को लघुशंका लग गयी. रावण ब्राह्मण वेश में आये भगवान् विष्णु की लीला को समझ नहीं पाया और उसने ब्राह्मण (विष्णु जी) के हाथ में शिवलिंग देकर लघुशंका से निवृत्त होने चला गया. भगवान् विष्णु ने शिवलिंग को पृथ्वी पर रख दिया. जब रावण वापस लौटा और उसने शिवलिंग को जमीन पर रखा पाया तो रावण ने बहुत प्रयास किया लेकिन वो शिवलिंग को नहीं उठा पाया. वैद्य नामक भील ने शिवलिंग की पूजा अर्चना की इसीलिए इस तीर्थ का नाम वैद्यनाथ पड़ायह स्थान झारखण्ड प्रान्त, पूर्व में बिहार प्रान्त के संथाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है.

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