पुलिस को नहीं बनाने दिया संबंध तो रातभर कपड़े उतरवाकर की पिटाई, रोंगटे खड़ी कर देने वाली ट्रांस फोटो जर्नलिस्ट की कहानी
पुलिस को नहीं बनाने दिया संबंध तो रातभर कपड़े उतरवाकर की पिटाई, रोंगटे खड़ी कर देने वाली ट्रांस फोटो जर्नलिस्ट की कहानी
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मुंबई की जोया थॉमस लोबो की कहानी दिल को छू लेने वाली है। अपने करियर में उन्होंने जो कुछ किया वह सभी को हैरान करने वाला है। जी दरअसल उनका कहना है, '17-18 साल की सभी ट्रांसजेंडर को लोग समझते हैं कि वो सेक्स वर्कर ही होंगी। एक बार मुझे सेक्स वर्कर समझकर पुलिस वाले ने एप्रोच किया था। जब मैं उससे बहस करने लगी तो वो मुझे पुलिस चौकी ले गए। रातभर पिटाई की। सेक्सुअल एसॉल्ट किया। मेरे साथ एक लड़का भी था। हम दोनों को नंगा कर पिटाई की गई। मैं दर्द से कराह रही थी। सुबह होते-होते किसी तरह वहां से भागी।'

आप सभी को बता दें कि जोया की मां को डर था कि यदि ये अपनी पहचान उजागर करती है तो समाज इसे सेक्स वर्कर समझेगा। केवल यही नहीं बल्कि अन्य ट्रांस वुमन की तरह उन्हें भी प्रताड़ित किया जाएगा। हालाँकि जोया को कैमरे में नेचर को कैद करने का शौक बचपन से था, इसलिए उन्होंने फोटोग्राफी में अपना करियर चुना। आपको बता दें कि जोया ने भीख मांगकर कैमरे खरीदे और अब वो इंडिया की पहली ट्रांस फोटो जर्नलिस्ट हैं। जी हाँ और आज उनकी कहानी हज़ारों लोगों को प्रेरणा देती है। जोया कहती हैं, ''मैंने अपने भीतर के स्त्री को छुपा रखा था। मुझे बचपन से महिलाओं की तरह सजने-संवरने का शौक था। मेरी बॉडी-लैंग्वेज भी महिलाओं जैसी थी। लड़कियों के साथ खेलना अच्छा लगता था। लोग टोकते थे कि मैं ऐसे क्यों बात कर रही हूं। लड़कियों के बीच क्यों उठ-बैठ रही हूं?'' आगे जोया ने बताया, 'आखिरकार एक दिन मैंने अपनी मां से अपने मन की बातें बताईं और 18 साल की उम्र में किन्नर समाज की एक गुरू से मिली, जहां से मैं अपनी दुनिया में आ गई। ट्रांस समुदाय को हमारे समाज में कोई काम नहीं दिया जाता है। इसलिए, मैं मुंबई की लोकल ट्रेन में भीख मांगा करती थी, आज भी मांगती हूं, लेकिन सपना फोटोग्राफर बनने का था।'

आगे कैमरा खरीदने के पीछे की कहानी कहते हुए उन्होंने कहा, 'ट्रेन में मांगकर और दिवाली में कमाकर जो थोड़े बहुत पैसे बचते थे, उससे एक पुराना कैमरा खरीदा। यूट्यूब देखकर कैमरा चलाना सीखा, लेकिन काम की मुझे अभी भी जरूरत थी। मुझे हिंदी, अंग्रेजी और मराठी तीनों भाषा बोलने आती है। पापा वाचमैन थे। मुंबई के माहीन इलाके में रहती थी। एक छत थी, वो भी उनकी मौत के साथ छिन गई। महीनों तक फ्लाईओवर के नीचे सोती थी। थिएटर की सफाई करने का काम भी कुछ महीनों तक किया।' आगे उन्होंने कहा एक शॉर्ट फिल्म में काम करने मौका मिला और ये मेरे लिए टर्निंग प्वाइंट था। उसके बाद जोया ने फ्रीलांस जर्नलिस्ट के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की। अब आज के समय में फोटो अखबार, डिजिटल… अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर उन्हें बतौर फोटो जर्नलिस्ट पहचान मिली है।

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