विश्व कप  का ऐसा इतिहास जो आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देता है
विश्व कप  का ऐसा इतिहास जो आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देता है
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प्रत्येक वर्ष में एक बार आयोजित होने वाला क्रिकेट विश्व कप ICC के कैलेंडर का सबसे बड़ा आयोजन होता है. दुनिया की बेहतरीन टीम के बीच होने वाले महासंग्राम के बाद एक सर्वश्रेष्ठ टीम चैंपियन बनती है. इन वर्षों में, वाकई कुछ खिताबी मुकाबले बेहद रोमांचक हुए तो कुछ एकतरफा निकले. अब जब कोरोना वायरस के संकट के बीच पूरा देश लॉकडाउन हो चुका है. लोग घरों में हैं तो आपके इस समय को मनोरंजक बनाने के लिए हम आपके लिए लेकर आए हैं, विश्व कप फाइनल के पांच ऐसे मुकाबले जिसे यादकर आप एक बार फिर रोमांचक हो जाएंगे.

1. भारत बनाम श्रीलंका, 2011 विश्व कप फाइनल: इस विश्व कप फाइनल को देखने से लगता है कि भगवान भी यही चाहते थे कि सचिन तेंदुलकर अपने घरेलू मैदान पर वर्ल्ड कप ट्रॉफी उठाने का सपना पूरा कर ले. एशिया के तीन सुपर पावर (भारत-बांग्लादेश और श्रीलंका) ने मिलकर 2011 के टूर्नामेंट की मेजबानी की थी. फाइनल में भारत-श्रीलंका आमने-सामने थे. 2 अप्रैल को खेले गए इस खिताबी मुकाबले में श्रीलंका ने पहले बल्लेबाजी करते हुए निर्धारित 50 ओवर्स में छह विकेट खोकर 6/274 रन बनाए. मलिंगा ने कमाल दिखाते हुए पूरे टूर्नामेंट में चलनी वाले वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर को जल्द ही निपटा दिया. मगर गौतम गंभीर और फिर धोनी की बेहतरीन पारी के बूते न सिर्फ भारत ने वापसी की बल्कि कप्तान धोनी ने छक्का मारकर दूसरा विश्व कप अपने नाम किया.

2. श्रीलंका बनाम ऑस्ट्रेलिया, 1996 विश्व कप फाइनल: 1996 का विश्व कप दूसरी बार भारतीय उपमहाद्वीप में आयोजित किया गया जिसका आयोजन भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका ने संयुक्त रूप से किया. श्रीलंका ने लाहौर के मैदान पर जीत हासिल की और पहली बार विश्व कप का खिताब हासिल किया. फाइनल में ऑस्ट्रेलिया का मुकाबला श्रीलंका से हुआ. ऑस्ट्रेलिया ने पहले खेलते हुए मार्क टेलर के 74 रन की मदद से 241 रन बनाए, लेकिन श्रीलंका ने तीन विकेट के नुकसान पर ही लक्ष्य हासिल कर लिया. फाइनल में अरविंद डी सिल्वा ने दो कैच पकड़े, तीन विकेट लिए और नाबाद 107 रन की पारी खेली.

3. भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया, 2003 विश्व कप फाइनल: 9 फरवरी से 23 मार्च के बीच खेले गए आठवें विश्व कप का आयोजन पहली बार अफ्रीकी धरती (दक्षिण अफ्रीका/केन्या/जिंबाब्वे) पर किया गया था. 23 मार्च के वॉन्डर्स के मैदान पर भारतीय टीम को फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के हाथों 125 रन की शर्मनाक हार मिली. ऑस्ट्रेलियाई टीम ने लगातार दूसरी और कुल तीसरी बार चैंपियन बनी. पूरे टूर्नामेंट के दौरान भारतीय टीम का प्रदर्शन शानदार रहा था. मगर फाइनल में यह टीम करिश्मा करने से चूक गई. सचिन तेंदुलकर 2003 के विश्वकप के टूर्नामेंट के मैन ऑफ द टूर्नामेंट जरुर रहे थे. उन्होंने लगभग हर मैच में बल्ले के साथ अच्छा प्रदर्शन किया. कई मौकों पर तो भारत को जीत भी दिलाई थी. टूर्नामेंट की 11 पारियों में 61.18 की औसत से 673 रन बनाकर सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज भी थे. जिसमें छह अर्धशतक और एक शतक भी शामिल था. बावजूद इसके ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ फाइनल में उन्होंने सभी को बहुत निराश किया.

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