जन्मदिन विशेष: किसी दिन देखना आज़ाद ये हिंदोस्तां होगा
जन्मदिन विशेष: किसी दिन देखना आज़ाद ये हिंदोस्तां होगा
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बहुत ही जल्द टूटेंगी गुलामी की ये जंजरें, किसी दिन देखना आजाद ये हिन्दोस्तां होगा। इस तरह की बात कहते थे अमर शहीद अशफाक उल्ला खान, जो कि वीर क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह के साथ भारतीय स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश राज से लड़ा करते थे। अशफाक बहुत वीर थे और उनमें बचपन से ही भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़ने की ललक थी।

जन्म

अशफाक उल्ला खान का जन्म उत्तर प्रदेश के शहीदगढ शाहजहाँपुर में रेलवे स्टेशन के पास स्थित कदनखैल जलालनगर मुहल्ले में 22 अक्टूबर 1900 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद शफीक उल्ला खान था। उनकी माँ मजहूरुन्निशाँ बेगम बला की खूबसूरत खबातीनों (स्त्रियों) में गिनी जाती थीं। अशफाक उल्ला खान ने स्वयं अपनी डायरी में लिखा है कि जहाँ एक ओर उनके बाप-दादों के खानदान में एक भी ग्रेजुएट होने तक की तालीम न पा सका वहीं दूसरी ओर उनकी ननिहाल में सभी लोग उच्च शिक्षित थे। उनमें से कई तो डिप्टी कलेक्टर व एसजेएम (सब जुडीशियल मैजिस्ट्रेट) के ओहदों पर मुलाजिम भी रह चुके थे।

परिवार से अलग कार्य

परिवार में ब्रिटिश राज के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहने वाले लोगों के विचारों से अशफाक के विचार नहीं मिलते थे। उनके संबंधियों में कई लोग अंग्रेजी हुकुमत के महत्वपूर्ण पदों पर थे लेकिन 1857 के गदर में उन लोगों (उनके ननिहाल वालों) ने जब हिन्दुस्तान का साथ नहीं दिया तो जनता ने गुस्से में आकर उनकी आलीशान कोठी को आग के हवाले कर दिया था। वह कोठी आज भी पूरे शहर में के नाम से मशहूर है। अशफाक ने अपने प्राणों को भारत माता की आजादी के लिए न्यौछावर कर दिया। अशफाक अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। सब उन्हें प्यार से अच्छू कहते थे।

एक रोज उनके बडे भाई रियासत उल्ला ने अशफाक को बिस्मिल के बारे में बताया कि वह बडा काबिल सख्श है और आला दर्जे का शायर भी, गोया आजकल मैनपुरी काण्ड मॅ गिरफ्तारी की वजह से शाहजहाँपुर में नजर नहीं आ रहा। काफी अर्से से फरार है खुदा जाने कहाँ और किन हालात में बसर करता होगा। बिस्मिल उनका सबसे उम्दा क्लासफेलो है। अशफाक तभी से बिस्मिल से मिलने के लिये बेताव हो गये।

वक्त गुजरा। 1920 में आम मुआफी के बाद राम प्रसाद बिस्मिलअपने वतन शाहजहाँपुर आर्ये औ घरेलू कारोबार में लग गये। अशफाक ने कई बार बिस्मिल से मुलाकात करके उनका विश्वास अर्जित करना चाहा परन्तु कामयाबी नहीं मिली। चुनाँचे एक रोज रात को खन्नौत नदी के किनारे सुनसान जगह में मीटिंग हो रही थी अशफाक़ वहाँ जा पहुँचे। बिस्मिल के एक शेर पर जब अशफाक ने आमीन कहा तो बिस्मिल ने उन्हें पास बुलाकर परिचय पूछा।

यह जानकर कि अशफाक उनके क्लासफेलो रियासत उल्ला का सगा छोटा भाई है और उर्दू जुबान का शायर भी है, बिस्मिल ने उससे आर्य समाज मन्दिर में आकर अलग से मिलने को कहा। घर वालों के लाख मना करने पर भी अशफाक़ आर्य समाज जा पहुँचे और राम प्रसाद बिस्मिल से काफी देर तक गुफ्तगू करने के बाद उनकी पार्टी के ऐक्टिव मेम्बर भी बन गये। यहीं से उनकी जिन्दगी का नया फलसफा शुरू हुआ। वे शायर के साथ-साथ कौम के खिदमतगार भी बन गये।

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