आपने भारतीय टेलीविज़न पर सर्वप्रथम प्रसारित होने वाली रामायण देखी होगी। इसमें रामभक्त हनुमान का रोल भी आपको अच्छा लगा होगा। इस रोल को निभाने वाला आखिर कौन था। जब आप इस तरह के धार्मिक धारावाहिक देखते हैं तो अपको हनुमान की भूमिका में केवल एक ही नाम याद आने लगता है। वह है दारा सिंह जी हां। अपने अभिनय से हिंदी सिनेमा, धारावाहिकों में अपनी अलग पहचान बनाने वाले दारा सिंह ने कम ही समय में लोगों के दिलों में स्थान बना लिया।
दरअसल वे थे तो कुश्ती के पहलवान लेकिन अपनी लगन और अभिनय प्रतिभा के दम पर उन्होंने हिंदी टेलिवीज़न पर लंबे समय तक राज किया। उन्होंने 55 वर्ष की आयु तक पहलवानी के दांव-पेंच आजमाए और कुश्ती के अखाड़े में पहलवानों को गुर सिखाते रहे। उनका जन्म 19 नवंबर 1928 को हुआ। पंजाब के अमृतसर में वे पैदा हुए थे। उहोंने अपने छोटे भाई के साथ कुश्ती के मुकाबलों में उतरने की शुरूआत की थी। उनकी पहलवानी का जोर इतना था कि वे विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान के तौर पर ख्याति बनाने में सफल हुए। काॅमनवेल्थ गेम में उनहोंने पूर्व विश्व चैंपियन जार्ज गारडियान्का को हराया। भारत इस जीत से विश्व चैंपियन बन गया।
1968 में उन्होंने अमेरिका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को हराया और फ्रीस्टाईल कुश्ती में विश्व चैंपियनशिप जीती। 1960 के दशक में भारत में फ्री स्टाईल कुश्तियों का बोलबाला रहा। यह ऐसा दौर था जिसमें हिंदी सिनेमा में भी पहलवानी और कुश्ती के सीन देखे जाने लगे। यहां से उन्हें हिंदी सिनेमा में ब्रेक मिला। यहां से उन्होंने हिंदू सिनेमा का सफर प्रारंभ किया। उन्होंने लोकप्रिय अभिनेत्री मुमताज की फिल्मों में प्रवेश किया। दारा सिंह ने विभिन्न फिल्मों में अभिनय के अलावा निर्देशन और लेखन का कार्य भी किया।
टेलिविज़न धारावाहिक रामायण में भी उनका अभिनय शानदार रहा। रांची में दारा सिंह का 1962 में खेला गया मुकाबला आज भी कुश्ती के अखाड़ों में चर्चा का विषय बन जाता है। दरअसल इस मुकाबले में उनहोंने सिडनी के किंग कांग की चुनौती को स्वीकार किया था। 200 किलो के किंग कांग को उन्होंने तीन बार पटखनी दी और फिर उसे उठाकर रिंग के बाहर फेंक दिया। उस दौरान एक टिकट 30 रूपए में मिला।