चेन्नई: 1998 में तमिलनाडु के कोयंबटूर में हुए सीरियल ब्लास्ट के मास्टरमाइंड एसए बाशा का 16 दिसंबर को निधन हो गया। उम्रकैद की सजा काट रहे बाशा को उम्र संबंधी बीमारियों के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उसने दम तोड़ दिया। आतंकी बाशा का अंतिम संस्कार उसके गृह नगर में किया गया, जिसमें हजारों की तादाद में मुसलमान जमा हुए। सोशल मीडिया पर अब उस आतंकी के जनाजे का वीडियो वायरल हो रहा है और लोग तरह तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता ,
— खुरपेंच (@khurpenchh) December 18, 2024
लेकिन फिर आतंकवादी के मरने पर विशेष समुदाय के हजारों लोग कैसे पहुंच गए ? pic.twitter.com/ZhqioZnqpq
एसए बाशा ने 1998 के कोयंबटूर धमाकों की साजिश रची थी, जिसमे 58 निर्दोष लोग मारे गए थे और 231 से अधिक लोग घायल हुए थे। लेकिन जिस तरह से उसके अंतिम संस्कार में मुसलमान जुटे, वह कई सवाल खड़े करता है। अल्लाहु अकबर के नारों के बीच बाशा को अंतिम विदाई दी गई, जैसे कोई 'संत' हो, न कि 58 निर्दोषों का हत्यारा। एसए बाशा की अंतिम यात्रा दक्षिण उक्कड़म के रोज गार्डन वाले घर से शुरू होकर हैदर अली टीपू सुल्तान सुन्नथ जमात मस्जिद तक गई। यात्रा में परिवार के सदस्यों के अलावा राजनीतिक कार्यकर्ताओं की भी भागीदारी देखी गई, जो मुस्लिम वोट बैंक की लालच में एक आतंकी के जनाजे में शामिल होने पहुँच गए थे। पुलिस ने सुरक्षा के मद्देनजर 1,500 से अधिक पुलिसकर्मियों और रैपिड एक्शन फोर्स (RAF) की तैनाती की थी, ताकि कट्टरपंथियों की भीड़ कोई अनहोनी ना कर दे।
ये है एस ए बाशा का जनाजा । 1998 के कोयंबटूर बम ब्लास्ट का अपराधी जिसमे 58 लोगो की मौत हुई थी और 231 लोग घायल हुए थे । आजीवन कारावास की सजा हुई थी ।
— Krishan Choudhary (@choudharykrs) December 18, 2024
इसकी मौत पर निकले जनाजे में उस कौम की भीड़ देखने लायक है जो अंबेडकर ,संविधान और "आतंक का कोई धर्म नही होता" की पानी पी पीकर कसमें… pic.twitter.com/2JEDl8Nclx
उल्लेखनीय है कि, एसए बाशा, अल-उम्मा संगठन का संस्थापक, कोयंबटूर धमाकों का मास्टरमाइंड था। 14 फरवरी 1998 को हुए इन धमाकों में तमिलनाडु की शांति भंग हुई थी। अल-उम्मा ने इन बम धमाकों को अंजाम देकर न केवल निर्दोष लोगों की जान ली बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया। बाशा को 16 अन्य लोगों के साथ उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
यह जुलूस नहीं बल्कि कोयंबटूर बम धमाके के मास्टरमाइंड आतंकवादी बाशा का जनाजा है …इस बम ब्लास्ट में 58 निर्दोष लोग मारे गये थे और 231 लोग घायल हो गए थे और आतंकी बाशा ने कोर्ट में कहा था कि उसने लोगों को मारके सही किया है !
— Major Surendra Poonia (@MajorPoonia) December 18, 2024
उस देश का क्या भविष्य है जिसमें आतंकवादी के जनाजे ने… pic.twitter.com/h3EMnlkICG
तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष के. अन्नामलाई और उपाध्यक्ष नारायणन थिरुपति ने बाशा के अंतिम संस्कार को लेकर कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि बाशा को "शहीद" की तरह पेश करना गलत है। अन्नामलाई ने पुलिस से सवाल किया कि इतनी भीड़ इकट्ठा होने की अनुमति क्यों दी गई। उन्होंने कहा, "आतंकी को संत की तरह विदाई देना सांप्रदायिक तनाव को हवा दे सकता है।"
आतंकी बाशा के जनाजे में जुटी मुस्लिम भीड़ कई सवाल खड़े करती है। क्या यह भीड़ इस बात का संकेत नहीं देती कि आतंकी गतिविधियों के लिए समर्थन और सहानुभूति समाज में अब भी जिंदा है? क्या यह कहा जा सकता है कि अल्लाहु अकबर के नारे लगाते हुए उस भीड़ में शामिल हजारों लोग आतंकी विचारधारा से मुक्त हैं? क्या यह गारंटी दी जा सकती है कि इस भीड़ में शामिल कोई भी व्यक्ति भविष्य का आतंकी नहीं बनेगा?