मध्यप्रदेश का यह आदिवासी जिला साक्षरता में सबसे पिछड़ा, 2 लाख से अधिक बच्चे है बिना पढ़े लिखे
मध्यप्रदेश का यह आदिवासी जिला साक्षरता में सबसे पिछड़ा, 2 लाख से अधिक बच्चे है बिना पढ़े लिखे
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झाबुआ से दिलीप सिंह वर्मा की रिपोर्ट

झाबुआ। मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले आलिराजपुर और झाबुआ जहां पर आदिवासी जनसंख्या 85 प्रतिशत से भी ज्यादा है। इन जिलों में आजादी के बाद भी चिकित्सा, शिक्षा, रोजगार, पानी, बिजली, सडक, रेल, खेती-बाडी जैसी अनेक बुनियादी सुविधाऐं उपलब्ध नहीं है। जिसके चलते आज भी आदिवासी पिछडे, गरीब, बेरोजगारी में अपना जीवन यापन करने को विवष है, उपर से अशिक्षित होना इनके लिये अभिषाप बन गया है। इन सबके पिछे सबसे बडा कारण है कि इन दोनों जिलों में स्थानिय स्तर पर बारह महिने रोजगार का अभाव होना है। रोजगार पाने के लिये जिले से आदिवासी महिला, पुरूष, बच्चे सभी प्रदेश से बहार गुजरात, राजस्थान सहित देश के अन्य प्रदेशों में पलायन कर जाते है और हर साल पलायन की संख्या लाखों में होती है, पलायन होने के कारण दोनों ही जिलों में बच्चे स्कूल जाने से वंचित रह जाते है और जिसके चलते वे निरक्षर रह जाते है।

आलिराजपुर जिले में साक्षरता का प्रतिशत 36 है, तो झाबुआ में यह बढकर अब 54 प्रतिशत हो गया है। लेकिन इन सबके बावजूद यहां पर हर साल करोडों रूपये शिक्षा के नाम पर खर्च करने के बाद भी आज भी आदिवासी शिक्षा से वंचित है। जिले मेें भूरिया आयोग ने पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम आजाद को एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें यह बताया गया था कि आदिवासी क्षेत्रों में कक्षा 8वीं के बाद बच्चों का पढाई के प्रति रूझान कम हो जाता है और वे काम की तलाश में बहार पलायन कर जाते है। जिसके कारण कक्षा आठवीं के बाद ड्राप आउट होने वाले बच्चों की संख्या बहुत अधिक होती है, जिसके लिये शिक्षा निति में बदलाव लाया जाकर बच्चों को ड्राप आउट होने से रोका जावें लेकिन समय के गर्त में भूरिया कमेटी की रिपोर्ट राष्ट्रपति भवन के गलियारों में न जाने कहां ओझिल हो गई।

आज स्वयं प्रशासनिय अधिकारी इन बातों को मान रहे है कि इन जिलों में शिक्षा का स्तर गिरा हुआ है। आलिराजपुर जिले की जिला पंचायत अधिकारी संस्कृति जैन का मानना है कि महिलाओं की शिक्षा में बडी कमी है और महिलाओं के अधिक पलायन करने से यह स्थिति बनी हुई है। वहीं झाबुआ जिला साक्षरता के प्रभारी जगदीश सिसौदिया का कहना है कि झाबुआ जिले में हर साल 15 हजार बच्चे शिक्षा से वंचित रह जाते है और जिले में आज तक कुल 2 लाख 35 हजार बच्चे अशिक्षित है जबकि जिले में हर साल शिक्षा पर 30 करोड रुपये का व्यय किया जाता है।

झाबुआ जिले के प्रभारी मंत्री के रूप में प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री इंदरसिंह परमार के होने के बाद भी झाबुआ जिले का यह हाल है, शिक्षा मंत्री की जिले के प्रति अनदेखी के चलते जिले का ऐसा हश्र तो होना ही है! आज देश की प्रथम नागरिक और राष्ट्रपति आदिवासी वर्ग से आति है देश में आदिवासी वर्ग को लेकर सरकारे बड़ी-बड़ी बातें करती है, तब देश के 85 प्रतिशत आदिवासी क्षेत्र वाले आदिवासी जिलों की शिक्षा के क्षेत्र में ऐसी दुर्गती सरकारों की कथनी और करनी को उजागर करती है।

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