उज्जैन में अनोखे अंदाज में खेली जाती है होली, 3000 वर्षो से चली आ रही है यह परंपरा
उज्जैन में अनोखे अंदाज में खेली जाती है होली, 3000 वर्षो से चली आ रही है यह परंपरा
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उज्जैन: होली के पर्व पर उज्जैन में अनूठा रंग देखने को मिला है. धर्मधानी उज्जयिनी में सिंहपुरी की होली 3000 सालों से पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रही है. यहां पांच हजार कंडों से होलिका बनाई जाती है. वहीं, ब्राह्मण यजुर्वेद के मंत्रों के उच्चारण के साथ उपले बनाते हैं. इन्हीं कंडों से होलिका सजाई जाती है. इस होली को लेकर ब्राह्मण होलिका दहन के दिन प्रदोषकाल में अलग अलग मंत्रों से पूजन करते हैं. रात्रि पर्यंत जागरण के पश्चात ब्रह्म मुहूर्त में चकमक पत्थर की सहायता से होलिका दहन किया जाता है.

ज्योतिषाचार्य पं अमर डब्बावाला ने मुताबिक गुर्जर गौड़ ब्राह्मण समाज तीन हजार सालों से सिंहपुरी में कंडा होली का निर्माण करता आ रहा है. सदियों पहले ही इनके पूर्वजों ने पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझते हुए अन्य लोगों को प्रेरित करने के लिए पर्यावरण हितैषी होलिका का निर्माण प्रारम्भ किया था, यह परंपरा आज भी निभाई जाती है. इस बार भी नौ मार्च को पांच हजार कंडों से होलिका बनाई जाएगी. इस होलिका के लिए एक माह पूर्व से ही ब्राह्मण शुक्ल यजुर्वेद के मंत्रों द्वारा कंडे बनाते हैं.

कंडा होली का जितना महत्व पर्यावरण संरक्षण के लिए है, उतना ही घर की सुख-समृद्धि के लिए भी है. पं.डब्बावाला के अनुसार कंडा होली के निर्माण तथा पूजन से घर-परिवार में व्याप्त समस्त प्रकार की नकारात्मकता नष्ट होती है तथा सुख-समृद्धि व खुशहाली हाती है. महर्षि हेमाद्री ने हजारों साल पहले इस बात को सिद्ध कर दिया था कि पंच तत्वों की शुद्धि के लिए गोबर का विशेष रूप से उपयोग होता है.

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