चिराग़ घर का हो, महफिल का हो कि मंदिर का,
हवा के पास कोई मसलहत नहीं होती
- वसीम बरेलवी
सहर ने अंधी गली की तरफ़ नहीं देखा,
जिसे तलब थी उसी की तरफ़ नहीं देखा।
- मंजर भोपाली
चिराग़ घर का हो, महफिल का हो कि मंदिर का,
हवा के पास कोई मसलहत नहीं होती
- वसीम बरेलवी
सहर ने अंधी गली की तरफ़ नहीं देखा,
जिसे तलब थी उसी की तरफ़ नहीं देखा।
- मंजर भोपाली
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