खुद की जान जोखिम में डालकर कोरोना पीड़ितों का इलाज कर रही है यह खिलाड़ी
खुद की जान जोखिम में डालकर कोरोना पीड़ितों का इलाज कर रही है यह खिलाड़ी
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कोरोना वायरस (Coronavirus) महामारी का जोर पूरी दुनिया में बढ़ता ही जा रहा है. विश्व में इस जानलेवा महामारी की चपेट में 44 लाख से ज्यादा लोग आ चुके हैं, जिनमें से करीब 3 लाख की मौत हो चुकी है. दुनिया भर के देश इस महामारी से निपटने के लिए मेडिकल स्टाफ की कमी से जूझ रहे हैं. ऐसे में खेल जगत में अपनी वाहवाही कराने के साथ ही चिकित्सा जगत में भी हाथ आजमा रहे बहुत सारे खिलाड़ी भी इस संक्रमण के खिलाफ जंग में अपने-अपने देश की मदद करने के लिए मैदान में उतर चुके हैं. अर्जेंटीना की एक ऐसी ही चैंपियन जूडो खिलाड़ी डॉक्टर का वीडियो ओलंपिक चैनल ने अपने टिवटर हैंडल पर पोस्ट करते हुए उसकी बहादुरी को सैल्यूट किया है.

रियो ओलंपिक की गोल्ड मेडल विनर हैं पाउला: ओलंपिक चैनल ने जिस डॉक्टर पाउला पारेतो (Paula Pareto) का वीडियो अपलोड किया है, वो 2016 के रियो ओलंपिक खेलों में अर्जेंटीना के लिए जूडो में 48 किलोग्राम भार वर्ग का गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं. करीब 34 साल की पारेतो इससे पहले 2008 के बीजिंग ओलंपिक में भी इसी भार वर्ग में ब्रांज मेडल विजेता रही थीं. वो 3 वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी एक गोल्ड, एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मेडल जीत चुकी हैं.

पेशे से आर्थोपेडिक डॉक्टर पाउला कर चुकी हैं टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई: पाउला पारेतो खेल जगत में जूडो खिलाड़ी के तौर पर पहचान बनाने के अलावा ऑर्थोपेडिक डॉक्टर के तौर पर भी अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स के सेन इसीद्रो हॉस्पिटल में मेडिकल प्रैक्टिस करती हैं. वो कोरोना संक्रमण के कारण टाल दिए गए टोक्यो ओलंपिक-2020 के लिए भी अपने देश की तरफ से क्वालीफाई कर चुकी हैं.

 

ओलंपिक टलने के बाद पहुंच गई हॉस्पिटल: पाउला ने टोक्यो ओलंपिक टाल दिए जाने के बाद मेडिकल स्टाफ की कमी को देखते हुए उन्होंने दोबारा हॉस्पिटल ज्वाइन कर लिया. हालांकि पाउला कहती हैं कि आर्थोपेडिक डॉक्टर होने की वजह से वो फ्रंटलाइन में बहुत ज्यादा काम नहीं आ पा रही हैं, लेकिन जहां भी जरूरत होती है, इस महामारी के दौरान वे वहां अपने साथी डॉक्टरों की मदद कर रही हैं.

हॉस्पिटल लौटते ही पोस्ट किया था चर्चिल का कथन: पाउला ने हॉस्पिटल में काम पर लौटते ही सेकंड वर्ल्ड वॉर में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल का एक मशहूर कथन अपने इंस्टाग्राम पेज पर पोस्ट किया था. यह कथन चर्चिल ने वर्ल्ड वॉर के दौरान अपने सैनिकों का हौसला बढ़ाने के लिए कहा था, जिसमें सभी कठिनाइयों से जूझकर जीत को ही आखिरी मंत्र माना गया है.

खुद भी क्वारंटीन रही थीं पाउला: पाउला को कोरोना संक्रमण से जूझने में मेडिकल स्टाफ की दिक्कतों का अंदाजा उस समय हुआ था, जब इस महामारी की शुरुआत के दौरान येकातेरिनबर्ग ग्रैंड स्लैम जूडो चैंपियनशिप से खेलकर लौटने पर उन्हें भी 2 हफ्ते के लिए क्वारंटीन कर दिया गया था. अपना आइसोलेशन पीरियड खत्म होते ही उन्होंने हॉस्पिटल पहुंचकर अपने साथियों की मदद करनी चालू कर दी थी.

हॉलैंड की ओलंपिक गोल्ड मेडल विजेता हॉकी गोलकीपर भी जुटी हैं अस्पताल में: हॉलैंड (नीदरलैंड) महिला हॉकी टीम की पूर्व गोलकीपर जोएस सोमब्रोएक (Joyce Sombroek) भी इस समय हॉस्पिटल में कोरोना पीड़ितों के इलाज में जुटी हुई हैं. लंदन ओलंपिक-2012 की गोल्ड मेडल और रियो ओलंपिक-2016 की सिल्वर मेडल विजेता सोमब्रोएक को वर्ल्ड हॉकी की सबसे सफल गोलकीपरों में से एक गिना जाता है. रियो ओलंपिक के बाद हिप में समस्या की वजह उन्हें खेल छोड़ना पड़ा तो उन्होंने एम्सटर्डम की व्रजी यूनिवर्सिटी में मेडिकल स्टडी के लिए एडमिशन ले लिया था. वे इस समय ट्रेनी डॉक्टर के तौर पर कोरोना पीड़ितों के इलाज में फ्रंट लाइन में काम कर रही हैं.

 

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