ऐसे हुआ था सिख धर्म का उदय
ऐसे हुआ था सिख धर्म का उदय
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सिख धर्म का उदय गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के साथ होता है। सिख का अर्थ है शिष्य. जो लोग गुरु नानक जी की शिक्षाओं पर चलते गए, वे सिख हो गए। यह धर्म विश्व का नौवां बड़ा धर्म है। भारत के प्रमुख चार धर्मों में इसका स्थान भी है। सिख धर्म की पहचान पगड़ी और अन्य पोशाकों से भी की जाती है लेकिन ऐसे भी कई सिख होते हैं जो पगड़ी धारण नहीं करते। 

नानक साहब ने रखी नींव

गुरु नानक देव जी ने ही सिख धर्म की नींव रखी थी। इनका जन्म 1469 ईस्वी में लाहौर के तलवंडी (अब ननकाना साहिब) में हुआ। बचपन से ही उनका मन एकांत, चिंतन और सत्संग में लगता था। सांसारिक चीजों में उनका मन लगाने के लिए उनका विवाह कर दिया गया। परन्तु यह सब गुरु नानक जी को परमात्मा के नाम से दूर नहीं कर पाया। उन्होंने घर छोड़कर घूमना शुरू कर दिया। पंजाब, मक्का, मदीना, काबुल, सिंहल, कामरूप, पुरी, दिल्ली, कश्मीर, काशी, हरिद्वार जैसी जगहों पर जाकर उन्होंने लोगों को उपदेश दिए। उनका कहना था कि हिन्दू-मुस्लिम अलग नहीं हैं और सबको एक ही भगवान ने बनाया है।

उन्होंने कहा, एक ओंकार (ईश्वर एक है), सतनाम (उसका नाम ही सच है), करता पुरख (सबको बनाने वाला), अकाल मूरत (निराकार), निरभउ (निर्भय), निरवैर (किसी का दुश्मन नहीं), अजूनी सैभं (जन्म-मरण से दूर) और अपनी सत्ता कायम रखने वाला है। ऐसे परमात्मा को गुरु नानक जी ने अकाल पुरख कहा, जिसकी शरण गुरु के बिना संभव नहीं। उनके सहज ज्ञान के साथ लोग जुड़ते गए। उनके शिष्य बनते गए। गुरु नानक से चली सिख परम्परा में नौ और गुरु हुए। अंतिम और दसवें देहधारी गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी थे।

भक्तिमार्ग से सिपाही बनें सिख

गुरु नानक देव जी के कथनों पर चलते हुए सिख धर्म एक संत समुदाय से शुरु हुआ। लेकिन समय के साथ सिख समुदाय ने अपनी वीरता के भी जलवे दिखाए। अंतिम गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी के काल में सिखों की एक बेहतरीन और कुशल लड़ाके की सेना तैयार हो चुकी थी। सिख कौम ने संत और सैनिक दोनों के भावों को खुद में समाया। वक्त के साथ खुद को बदलते रखने की कला के कारण ही आज सिख धर्म विश्व के रह हिस्से में पाया जाता है। 

अंतिम सिख गुरु और गुरु ग्रंथ साहिब जी

सिख धर्म के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण फैसला गुरु गोबिन्द सिंह जी ने किया। उन्होंने सभी गुरुओं की वाणी को एक ग्रंथ में समेटा और उस ग्रंथ को गुरु की गद्दी सौंपी और सिखों से कहा- अब कोई देहधारी गुरु नहीं होगा। सभी सिखों को आदेश है कि वे गुरु ग्रंथ साहिब जी को ही गुरु मानेंगे। तब से सिख धर्म में पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब को ही गुरु माना गया।

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