'अल्पसंख्यकों के लिए भारत से बेहतर कोई देश नहीं..', पाकिस्तान के मुंह पर तमाचा है CPA की ये रिपोर्ट
'अल्पसंख्यकों के लिए भारत से बेहतर कोई देश नहीं..', पाकिस्तान के मुंह पर तमाचा है CPA की ये रिपोर्ट
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नई दिल्ली: पाकिस्तान लगातार दुनियाभर में राग अलापता फिर रहा है कि भारत में अल्पसंख्यकों (खासकर मुस्लिमों) पर अत्याचार हो रहा है. पाकिस्तान, कश्मीर को लेकर निराधार दावे करता रहता है. लेकिन, भारत में मुस्लिमों पर जुल्म होने का दावा करने वाले हर व्यक्ति को सेंटर फॉर पॉलिसी एनालिसिस (CPA) जरूर पढ़नी चाहिए. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे विश्व के 110 देशों में भारत वो देश है, जो अल्पसंख्यकों के लिए सबसे बेहतर है.

वैश्विक अल्पसंख्यकों पर CPA की एक रिपोर्ट में धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति समावेशी उपायों के लिए भारत को 110 देशों की सूची में सबसे ऊपर रखा गया है. यानी, इन 110 देशों में भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति सबसे बेहतर है. इसके बाद दक्षिण कोरिया, जापान, पनामा और अमेरिका का नंबर आता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि मालदीव, अफगानिस्तान और सोमालिया इस लिस्ट में सबसे नीचे हैं, ब्रिटेन  और UAE क्रमशः 54वें और 61वें पायदान पर हैं. CPA रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की अल्पसंख्यक नीति विविधता बढ़ाने पर जोर देती है. भारत के संविधान में संस्कृति और शिक्षा में धार्मिक अल्पसंख्यकों की प्रगति के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, किसी अन्य देश के संविधान में भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यकों को बढ़ावा देने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं है.

CPA की रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि कैसे, कई अन्य देशों के विपरीत, भारत में किसी भी धार्मिक संप्रदाय पर कोई पाबंदी नहीं है. मॉडल की समावेशिता और कई धर्मों और उनके संप्रदायों के विरुद्ध भेदभाव की कमी की वजह से संयुक्त राष्ट्र भारत की अल्पसंख्यक नीति को अन्य देशों के लिए एक मॉडल के रूप में इस्तेमाल कर सकता है. रिपोर्ट में भारत की अल्पसंख्यक नीति पर प्रकाश डाला गया है जिसकी समय-समय पर समीक्षा और पुनः जांच की जानी चाहिए. 

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि अगर भारत देश को संघर्षों से मुक्त रखना चाहता है, तो उसे अल्पसंख्यकों के प्रति अपने नजरिए को तर्कसंगत बनाना होगा. CPA द्वारा बनाई गई वैश्विक अल्पसंख्यक रिपोर्ट का मकसद भी विश्व समुदाय को विभिन्न देशों में उनकी आस्था के आधार पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ पक्षपात पर शिक्षित करना है. यह रिसर्च उन मुद्दों पर भी विचार करती है, जिनसे विभिन्न धार्मिक समूह और संप्रदाय वैश्विक स्तर पर निपटते हैं.

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