नही रहे , पूर्व IAS  पद्म विभूषण महेश नीलकंठ बुच
नही रहे , पूर्व IAS पद्म विभूषण महेश नीलकंठ बुच
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भोपाल : भोपाल शहर से बखूबी लगाव रखने वाले और शहर की खूबसूरती से प्रेम करने वाले पूर्व IAS अधिकारी पद्म विभूषण महेश नीलकंठ बुच का निधन हो गया है। वे चार दिन से शहर के बंसल अस्पताल में भर्ती थे। डॉक्टर स्कंद त्रिवेदी ने बताया कि उनकी मृत्यु ब्रेन हैमरेज की वजह से हुई है। दिन में उन्हें लकवा मार गया था। धीरे-धीरे उनके शरीर के अंगों ने काम करना बंद कर दिया। बुच सामजिक कार्यों में काफी सक्रिय रहा करते थे। भोपाल और मध्यप्रदेश को और बेहतर बनाने के लिए चिंतित थे। बुच का जन्म 5 अक्टूबर 1934 को भोपाल में ही हुआ था। बुच की पत्नी निर्मला बुच मध्यप्रदेश की मुख्यसचिव रह चुकी हैं। बुच शहर की कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए थे।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एम.एन.बुच के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उन्होंने कहा है कि बुच कुशल प्रशासक थे। समाज सेवा के क्षेत्र में उनका योगदान भुलाया नहीं जा सकता।  बुच सामाजिक सरोकारों से जुड़े उत्कृष्ट लेखक और आम जनता में काफी लोकप्रिय थे। भोपाल को आधुनिक स्वरूप देने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। राज्यपाल एवं प्रदेश के कई मंत्रियों सहित गणमान्य नागरिकों ने बुच के निधन पर शोक व्यक्त किया है। वर्ष 1961 की शुरुआत में बुच की पोस्टिंग भोपाल में सचिवालय में हुई थी। इससे पहले वह मुरैना, देवास जिले के कन्‍नौद उपखंड एवं बालाघाट जिले के वारासिवनी उपखंड में रह चुके थे।

भोपाल से उन्हे विशेष लगाव था। यही कारण रहा की सेवानिवृत्त होने के बाद भी वह भोपाल में ही रहे। भोपाल के बारे में उनका कहना था कि इस शहर का मौसम मेरे लिए अनोखा अनुभव है। यहां ग्रीष्मकाल में बहुत ज्यादा गर्मी नहीं पड़ती थी। मैंने पहली दफा यह अनुभव किया कि गर्मियों में शाम को बिना पंखे बैठा जा सकता है। बारिश में तो भोपाल की रंगत देखते ही बनती है।  बुच कहते थे कि आज से 54 साल पहले वर्षा ऋतु अपेक्षा के आधार पर चलती थी, जबकि आजकल बारिश के मौसम की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। शरद ऋतु भी भोपाल में बहुत सुहानी थी और कुछ हद तक आज भी है। फर्क आया है ग्रीष्मकाल का।

हमेशा भोपाल की फिक्र रहती थी- 

बुच हमेशा अपने शहर भोपाल के बारे में चिंतित रहते थे। उन्होंने एक बार अपने लेख में लिखा था कि भोपाल झीलों का शहर तो है ही और इसके आसपास चारों दिशा में हरे-भरे जंगल होते थे। आज परिस्थिति बदल गई है। बड़े तालाब का क्षेत्रफल 45 वर्गकिमी से घटकर अब 31 वर्गकिमी बचा है, उसके जलग्रहण क्षेत्र के सारे जंगल कट चुके हैं और भोपाल बहुत ही तेजी से एक ईंट-पत्थर का रेगिस्तान बन रहा है। नदी-नालों पर मकान बन गए हैं और जमीन का ढलान होते हुए भी अब अनेक क्षेत्रों में बारिश में पानी भर जाता है क्योंकि बहाव के सभी नाले प्राय: समाप्त हो गए हैं।

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