मन्नारशाला, आलापुज्हा से मात्र 37 किलोमीटर की दूरी पर है. यहाँ पर नागराज और उनकी संगिनी नागयक्षी को समर्पित एक मंदिर है. एक मिथक के अनुसार महाभारत काल में खंडावा नामक कोई वन प्रदेश था जिसे जला दिया गया था. परन्तु एक हिस्सा बचा रहा जहाँ वहां के सर्पों ने और अन्य जीव जंतुओं ने शरण ले ली.
मंदिर परिसर से ही लगा हुआ एक नम्बूदिरी का साधारण सा खानदानी घर है. मंदिर के मूलस्थान में पूजा अर्चना आदि का कार्य वहां के नम्बूदिरी घराने की बहू निभाती है. उन्हें वहां अम्मा कह कर संबोधित किया जाता है. शादी शुदा होने के उपरांत भी वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए दूसरे पुजारी परिवार के साथ अलग कमरे में निवास करती है.
कहा जाता है कि उस खानदान की एक स्त्री निस्संतान थी. उसके अधेड़ होने के बाद भी उसकी प्रार्थना से वासुकी प्रसन्न हुआ और उसकी कोख से एक पांच सर लिया हुआ नागराज और एक बालक ने जन्म लिया. उसी नागराज की प्रतिमा इस मंदिर में लगी है.यहाँ की महिमा यह है कि निस्संतान दम्पति यहाँ आकर यदि प्रार्थना करें तो उन्हें संतान प्राप्ति होती है.
इसके लिए दम्पति को मंदिर से लगे तालाब (बावडी) में नहाकर गीले कपडों में ही दर्शन हेतु जाना होता है. साथ में ले जाना होता है एक कांसे का पात्र जिसका मुह चौडा होता है.इसे वहां उरुली कहते है.उस उरुली को पलट कर रख दिया जाता है. संतान प्राप्ति अथवा मनोकामना पूर्ण होने पर लोग वापस मंदिर में आकर अपने द्वारा रखे गए उरुली को उठाकर सीधा रख देते हैं औरउसमें चढावा आदि रख दिया जाता है.
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