नई दिल्ली: यह बात तो हम सभी जानते ही है कि हमारे देश को आज़ाद हुए 72 वर्ष हो चुके है. वहीं भारत की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूलने वाले महान स्वंतत्रता सेनानियों शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान को कभी भुलाया कोई भी नहीं भूल पाया है. जंहा जब-जब आजादी की बात होगी तब-तब इंकलाब का नारा देने वाले भारत माता के ये वीर सपूत याद किए जाते रहेंगे. 23 मार्च 1931 को ही भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था.
शायद ही आपको पता हो कि पाकिस्तान में उनका वो घर आज भी मौजूद है, जहां शहीदे आजम भगत सिंह का जन्म हुआ था. 28 सितंबर, 1907 को फैसलाबाद जिले के जरांवाला तहसील स्थित बंगा गांव के चाक नंबर 105 जीबी में जन्मे भगत सिंह का बचपन उस पुश्तैनी घर में ही बीता था. चार साल पहले इसे हेरिटेज साइट का एलान किया जा चुका है. जंहा यह भी कहा जा रहा है कि इसे सरंक्षित करने के बाद दो साल पहले पब्लिक के लिए खोल दिया गया. फरवरी 2014 में फैसलाबाद जिला प्रशासन ने इसे संरक्षित घोषित करते हुए मरम्मत के 5 करोड़ रुपए की रकम भी जारी की थी. उनके गांव में हर साल 23 मार्च को उनके शहादत दिवस पर सरदार भगत सिंह मेला भी ऑर्गेनाइज किया जाता है.
जानकारी के लिए हम बता दें कि देश के बंटवारे के बाद भगत सिंह के मकान पर एक वकील ने कब्जा कर लिया था. हालांकि, अब प्रशासन ने मकान और सामान दोनों को ही अपने कब्जे में ले लिया है. ज्ञात हो कि भगत सिंह के पिता और चाचा ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांतिकारी आंदोलन चलाने वाली गदर पार्टी के सदस्य थे. इसके चलते ही भगत सिंह के मन में भी बचपन से ही ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आक्रोष भर गया और वो भी देश की आजादी के लिए क्रांति की रहा पर चल पड़े.
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