खुशी पैदा करने का सरल उपाय
खुशी पैदा करने का सरल उपाय
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खुशी के बारे में आपका कोई विचार नहीं होना चाहिए। आपको बस खुश रहना चाहिए। चार्ल्स डार्विन ने बताया था कि आप बंदर थे। धीरे-धीरे आपकी पूंछ गायब हो गई और आप इंसान बन गए। पूंछ तो गायब हो गई, लेकिन क्या आपकी बंदर वाली आदतें भी खत्म हुई हैं? आपके और चिम्पैंजी के डीएनए में  बस 1.23% का ही फर्क है। जाहिर है, बंदरों के गुण अब भी इंसानों में मौजूद हैं।

बहुत पुरानी बात है। एक आदमी था, जिसका नाम था टोपीवाला। वह टोपी बेचता था। गर्मियों की दोपहर थी। काम करते-करते वह थक गया, और एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसने अपना खाना खोला और खाने लगा। खाना खाकर उसकी आंख लग गई। आंख खुली तो उसने देखा कि उसकी सारी टोपियां गायब हैं। जब आपको कुछ समझ नही आता कि क्या किया जाए – तो आप क्या करते हैं? ऊपर देखते हैं, ऊपरवाले की याद आती है आपको। खैर, इस टोपीवाले ने भी ऊपर देखा। वह क्या देखता है – कुछ बंदर उसकी टोपियां पहने बैठे हैं। वह उन बंदरों पर चिल्लाया। बंदर भी उस पर चिल्लाए। उसने ईंट के टुकड़े बंदरों पर मारे। बंदरों ने भी इन टुकड़ों को उसकी तरफ  वापस फेंका। परेशान होकर टोपीवाले ने अपने टोपी उतारी और जमीन पर फेंक दी। बस फिर क्या था, बंदरों ने भी अपनी-अपनी टोपियां उतारकर जमीन पर फेंक दीं।

उस घटना के कई सालों बाद ऐसी ही दूसरी घटना घटी। ऐसे ही एक और टोपीवाला टोपियां बेचने जा रहा था। गर्मी से परेशान होकर वह भी पेड़ के नीचे बैठ गया। इस टोपीवाले के साथ भी कुछ वैसा ही हुआ जैसा सालों पहले उस टोपीवाले के साथ हुआ था। इसकी भी टोपियां बंदर आ कर ले गए। उसने अपने पूर्वजों से वह कहानी सुन रखी थी, इसलिए वह उठा और उसने बंदरों को मुंह चिढ़ाना शुरू कर दिया। बंदरों ने भी उसे बदले में मुंह चिढ़ा दिया। टोपीवाले ने उन बंदरों के साथ खूब मजाक किया। अंत में उसने अपनी टोपी उतारी और जमीन पर फेंकदी। इतने में एक बड़ा बंदर नीचे उतरकर आया, टोपी उठाई और टोपीवाले के पास पहुंचा। टोपीवाले के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़कर बंदर बोला, ‘मूर्ख, तुझे क्या लगता है, कि बस तेरे ही दादा थे।’
खुशी दूसरों में न ढूंढे

दरअसल, हम दूसरों को देखकर अपनी खुशी तय करने लगते हैं। यूं ही किसी राह चलते शख्स को देखकर हमें लगता है, कि यह वाकई खुश है। बस हम उसी की तरह हो जाना चाहते हैं, और फिर नतीजा होता है – निराशा। कुछ समय बाद हमें लगता है, कि साइकल पर चलने वाला शख्स खुश है। हम साइकल पर चलना शुरू कर देते हैं और कुछ दिन बाद ही निराश होने लगते हैं। फिर हमें लगता है कि जो लोग कार में चल रहे हैं, असल में वे खुश हैं और कार में चलना ही असल मायनों में खुशी है। हो क्या रहा है? दूसरों को देखकर हमें लगता है, कि उनके जैसे काम करके हम खुश हो सकते हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि खुशी के लिए कुछ बाहरी तत्व प्रेरक का काम करते हैं। लेकिन सच यही है कि खुशी हमेशा हमारे अंदर से ही आती है। ऐसा नहीं होता कि बाहर कहीं से किसी ने आप पर खुशी की बारिश कर दी। कल्पना कीजिए, 1950 में आपने अपने लिए एक कार खरीदी। कार के साथ आपको दो नौकर भी रखने पड़े, क्योंकि कार धक्का लगाने से स्टार्ट होती थी। आज सब कुछ सेल्फ स्टार्ट होता है। अब आप ही बताइए कि आप अपनी खुशी, अपनी सेहत, शांति और सुख संपन्नता को सेल्फ स्टार्ट करना चाहते हैं, या पुश स्टार्ट?

अपनी खुशी खुद पैदा करें

ज्यादातर लोगों के साथ ऐसा ही होता है। जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जाती है, उनके चेहरे से रौनक गायब होने लगती है। किसी सड़क के किनारे खड़े हो जाइए, और वहां से निकलने वाले लोगों को गौर से देखिए और ढूंढिए कि आपको कितने चेहरों पर आनंद दिखाई देता है। अगर आपको कोई आनंदित चेहरा दिखेगा भी तो आमतौर पर वह युवा होगा। वैसे आजकल युवा भी गंभीर और तनाव से भरे दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जाती है, वे और गंभीर होते जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे कब्र की तैयारी करने की उन्हें बड़ी जल्दी है। कब्र की तैयारी किसी और को करनी चाहिए, आपको नहीं। अभी मुझसे किसी ने पूछा, ‘सद्‌गुरु आप कैसे हैं?’ मैंने कहा, ‘मैंने तय किया है कि – या तो मैं बिल्कुल ठीक ठाक रहूंगा या फिर नहीं रहूंगा।’

खुशी कोई ऐसी चीज नहीं है, जो किसी खास काम को करने से पैदा होती हो। इसे देखने के तमाम तरीके हैं। सबसे आसान तरीका है रासायनिक प्रक्रिया यानी केमिस्ट्री को समझना। इंसान के हर अनुभव के पीछे एक रासायनिक आधार होता है। अगर आप शांति चाहते हैं तो एक निश्चित रासायनिक प्रक्रिया होती है। अगर आप आनंदित रहना चाहते हैं तो एक अलग तरह की रासायनिक प्रक्रिया होगी। यह पूरा मामला विज्ञान और तकनीक का है, जिसे आप अंदरूनी तकनीक भी कह सकते हैं। इसी तकनीक की मदद से आप अपने भीतर सही रासायनिक प्रक्रिया पैदा कर सकते हैं। परम आनंद की रासायनिक प्रक्रिया आपके जीवन के हर पल को परम आनंद से भर देगी। अच्छी बात यह है कि हर इंसान ऐसा कर पाने में सक्षम है, बशर्ते उसने अपने अंदर सेल्फ स्टार्ट बटन का पता लगा लिया हो। अगर ऐसा नहीं है तो हर वक्त किसी न किसी को आपको धक्का मार कर स्टार्ट करते रहना पड़ेगा। जीवन में चीजें इस तरह नहीं चलतीं कि, वे हमेशा आपके लिए लाभकारी ही हों। अगर आप चाहते हैं कि जीवन हमेशा आपके अनुसार चलता रहे तो यह तभी हो सकता है जब आप दुनिया में कुछ भी न करें।

अगर आप चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना कर रहे हैं, तो ऐसी तमाम चीजें होंगी जो आप नहीं चाहते। और अगर ये परिस्थितियां आपको कष्टों में डाल रही हैं, तो जाहिर है – धीरे धीरे आप अपने जीवन के दिन कम कर रहे हैं। कष्टों के डर ने पूरी मानवता को जकड़ लिया है। अब वक्त आ गया है कि इंसान अपने भीतर एक ऐसी रासायनिक प्रक्रिया पैदा करे या एक ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम तैयार करे कि कष्टों के प्रति उसका डर खत्म हो जाए। कष्टों का डर ख़त्म होने से आनंद में जीना ही उसका स्वभाव बन जाएगा और तभी इंसान अपनी पूर्ण क्षमता को जानने के लिए स्वयं को दांव पर लगा सकेगा।

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