आखिर मृत्यु है क्या मृत्यु के विषय में दुनियाभर में अलग-अलग तरह की बातें और मान्यताएं प्रचलित हैं। इस तरह कि मान्यताओं व धारणाओं में से अधिकांश काल्पनिक, मनगढ़ंत एवं झूटी होती हैं, लेकिन समय-समय पर दुनिया में ऐसे भी तत्वज्ञानियों एवं योगियों ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपने जीवन काल में ही इस महत्वपूर्ण गुत्थी को सुलझाया है।
जीवन का न तो कभी प्रांरभ होता है और न ही कभी अंत। लोग जिसे मृत्यु कहते हैं वह मात्र उस शरीर का अंत है जो प्रकृति के पांच तत्वों (पृथ्वी,जल, वायु,अग्री और आकाश) से मिलकर बना है। इस सच से हम सभी परिचित हैं, लेकिन मृत्यु के पश्चात जब शव को अंतिम विदाई दे दी जाती है तो ऐसे में आत्मा का क्या होता है यह अभी तक एक रहस्य ही बना हुआ है। पाप-पुण्य के होते हैं हिसाब गरुड़ पुराण के अनुसार जब आत्मा शरीर छोड़ती है तो उसे दो यमदूत लेने आते हैं।
मानव अपने जीवन में जैसा कर्म करता है यमदूत उसे उसके अनुसार अपने साथ ले जाते हैं। अगर मरने वाला सज्जन है या फिर पुण्यात्मा है तो उसके प्राण निकलने में कोई पीड़ा नहीं होती है, लेकिन वह दुराचारी या पापी हो तो उसे प्राण निकलने वक्त पीड़ा सहनी पड़ती है। पुराण में यह भी उल्लेख मिलता है कि मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत केवल 24 घंटों के लिए ही ले जाते हैं और इस दौरान आत्मा को दिखाया जाता है कि उसने कितने पाप और कितने पुण्य किए हैं।
इसके बाद आत्मा को फिर उसी घर में छोड़ दिया जाता है जहां उसने शरीर का त्याग किया था। 13 दिन के उत्तर कार्यों तक वह वहीं रहता है, इसके बाद वह फिर यमलोक की यात्रा करता है। यह भी जानें गीता के उपदेशों में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि आत्मा अमर है उसका अंत नहीं होता, वह सिर्फ शरीर रूपी वस्त्र बदलती है।
पुराणों के अनुसार जब भी कोई मनुष्य मरता है और आत्मा शरीर को त्याग कर यात्रा शुरू करती है तो इस दौरान उसे तीन प्रकार के मार्ग मिलते हैं, उस आत्मा को किस मार्ग पर चलाया जाएगा यह केवल उसके कर्मों पर निर्भर करता है। इस रास्ते आत्मा जाती है स्वर्ग व नर्क ये तीन मार्ग अर्चि मार्ग, धूम मार्ग व उत्पत्ति-विनाश मार्ग हैं। अर्चि मार्ग ब्रह्मलोक व देवलोक की यात्रा के लिए होता है, वहीं धूममार्ग पितृलोक की यात्रा पर ले जाता है और उत्पत्ति-विनाश मार्ग नर्क की यात्रा के लिए है।