ब्रसेल्स में आतंकी धमाके होने के बाद एक बार फिर दुनिया दहल गई। आतंक के हमले को लेकर दुनियाभर में चर्चा होने लगी, आतंक के अंत और शांति की पहल के बीच दूसरी ओर से हथियारों की होड़ चलती रही। ब्रसेल्स धमाकों में कई देशों के नागरिकों के प्रभावित होने की जानकारी मिली तो विश्व दहल उठा। इन लोगों में अमेरिकी नागरिक भी थे। ऐसे में विश्वभर में चिंतन हुआ, यह चर्चा हुई कि आखिर इस्लामिक आतंकवाद विशेषकर आईएसआईएस के आतंकियों से विश्व को कितना खतरा है, इन धमाकों के बाद पेरिस के हमले से प्रभावित भी सहम गए। फ्रांस, रूस, अमेरिका सहित वे सभी देश जो ईरान में संयुक्त अभियान में लगे हैं या फिर वे सभी जो आतंकवाद के विरूद्ध एकजुट हैं वे सभी दुखी हो उठे। आखिर इस्लाम के ऐसे कट्टरवाद को जो कि आतंकवाद की ओर सभी को प्रेरित करता है कैसे रोका जाए।
यही नहीं आतंकवादियों को मिलने वाली आर्थिक सुविधाओं, संचार सुविधाओं और हथियारों को लेकर भी चर्चा होने लगी। विश्वस्तर पर एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात कई देशों के नेताओं को जंची भी होगी, मगर सबसे बड़ी बात यह है कि आखिर आतंकवाद के इतने हमले होने के बाद भी हथियारों की होड़ क्यों मचाई जाती है। क्यों इस्लामिक आतंकवाद को समर्थन देने वाले देश इन आतंकियों को आधुनिक तकनीक की सुविधाऐं प्रदान करते हैं और क्यों इन आतंकी संगठनों के लिए विभिन्न देशों के नागरिक उत्साहित होकर कार्य करते हैं।
इन सभी के पीछे कारण वही आता है कि अमेरिका द्वारा छद्म तरह से मचाई गई हथियारों की होड़ कितनी उचित है। कितनी जायज़ है। आतंक को रोकने के लिए विश्व स्तर पर यही चर्चा की जाती रही है, कि ऐसे आतंकी संगठनों को मिलने वाली आधुनिक संचार, इंटरनेट सुविधाओं को किसी तरह से ध्वस्त कर दिया जाए, यही नहीं इन्हें मिलने वाली आर्थिक मदद और इनके आर्थिक स्त्रोतों पर भी लगाम लगा दी जाए तो ये आतंकी संगठन स्वयं ही अपनी गतिविधियों को हिंसक नहीं करेंगे और आतंकी संगठन समाप्त हो जाऐंगे।
कहा जाता है कि जो अमेरिका 9/11 के आतंकी हमले को झेल चुका है उसी ने कुख्यात आतंकी ओसामा बिन लादेन को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था। ओसामा के अलकायदा नेटवर्क कमजोर हुआ लेकिन इसके बाद ईराक और पाकिस्तान के क्षेत्र के समीप आईएसआईएस नामक एक अन्य संगठन मजबूत हो गया। इस संगठन ने अमेरिका और अन्य देशों के खिलाफ विद्रोह कर दिया लेकिन इस संगठन को ही कई मुस्लिम राष्ट्रों का प्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त है। आतंकवाद की रोकथाम करने की बात करने वाला अमेरिका इन आतंकी संगठनों को मिलने वाली मदद का अप्रत्यक्ष समर्थक है।
दरअसल भारत में हुए पठानकोट हमले के बाद यह स्पष्ट हो चुका है कि भारत में आतंकवाद पाकिस्तान प्रेरित है। ऐसे में अमेरिका द्वारा आतंकवाद के विरूद्ध भारत को साथ देना और पाकिस्तान को एफ-16 लड़ाकू विमान की आपूर्ति करवाना दोनों एक दूसरे के विरोधाभासी कदम हैं। ऐसे में अमेरिका स्वयं ही आतंकवाद के पोषक के तौर पर उन देशों की सहायता कर रहा है जो आतंकी संगठनों को सहायता कर रहे हैं। हालांकि पाकिस्तान स्पष्ट कर चुका है कि उसे उसके देश में उठने वाले आतंक को रोकने के लिए इन विमानों की जरूरत है लेकिन पठानकोट हमले के ही साथ मुंबई में हुए 26/11 आतंकी हमले को लेकर किसी तरह की ठोस कार्रवाई न करने को लेकर उसके ये दावे कमजोर लग रहे हैं।
'लव गडकरी'