कुरान जलाने पर हुई जिस व्यक्ति की हत्या, उसे कुरान जलाकर ही दी गई श्रद्धांजलि

कुरान जलाने पर हुई जिस व्यक्ति की हत्या, उसे कुरान जलाकर ही दी गई श्रद्धांजलि
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कोपेनहेगन: डेनमार्क में दक्षिणपंथी नेता रास्मस पलुदन ने कोपेनहेगन में तुर्की दूतावास के सामने कुरान जलाकर प्रदर्शन किया। उन्होंने इसे स्वीडन में मारे गए ईसाई सलवान मोमिका की हत्या के प्रतिरोध में उठाया गया कदम बताया और उन्हें श्रद्धांजलि देने का एक जरिया बताया। यानी जिस व्यक्ति की हत्या कुरान जलाने पर हुई, उसे कुरान जलाकर ही श्रद्धांजलि दी गई। 

रिपोर्ट के अनुसार, 1 फरवरी, 2025 को पलुदन कुरान की कई प्रतियाँ लेकर पहुँचे और उन्हें जलाकर सलवान मोमिका के समर्थन में भाषण दिए। इस घटना के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए। पलुदन ने कुरान जलाने के बाद कहा कि यह सलवान मोमिका के बलिदान और इस्लाम की उनकी आलोचना की याद में किया गया है। उन्होंने कहा, "मैं कोपेनहेगन में तुर्की दूतावास के सामने खड़ा हूँ और यहाँ कुरान जल रही है। यह इस्लाम की आलोचना करने वाले सलवान मोमिका को श्रद्धांजलि है।"

रास्मस पलुदन पहले भी कई बार इस तरह की हरकतें कर चुके हैं और इसके चलते उन्हें कुछ मामलों में सजा भी मिली है। उन्हें इस्लामी कट्टरपंथियों से धमकियाँ भी मिलती रही हैं। उन्होंने दावा किया कि मुस्लिम समुदाय कभी भी यूरोप में शांति से नहीं रह सकता और उन्होंने इस्लाम को लेकर विवादास्पद बयान दिए। इस घटना के बाद रास्मस पलुदन की सुरक्षा को लेकर खतरा और बढ़ गया है। 38 वर्षीय पलुदन डेनमार्क के चुनावों में भी खड़े हो चुके हैं, लेकिन उनकी पार्टी को कम समर्थन मिला था। उनके भड़काऊ कार्यों के चलते कई जगहों पर दंगे हो चुके हैं।

गौरतलब है कि सलवान मोमिका को 30 जनवरी को स्वीडन के स्टॉकहोम में उनके फ्लैट में मार दिया गया था। वह एक ईराकी मूल के ईसाई थे, जिन्होंने पहले कुरान जलाने की घटना को अंजाम दिया था। उनकी हत्या के पीछे इस्लामी कट्टरपंथियों का हाथ बताया जाता है। 

बता दें कि, संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 1927 में महाड़ सत्याग्रह के दौरान मनुस्मृति दहन किया था, क्योंकि वे इसे दलितों और शूद्रों के प्रति अन्यायपूर्ण मानते थे। लेकिन इसके बावजूद उनकी हत्या नहीं हुई, न ही हिंदू समाज ने उन्हें किसी तरह की हिंसा का शिकार बनाया। उल्टा, उन्हें भारत का पहला कानून मंत्री बनाया गया और भारतीय संविधान के निर्माण में अग्रणी भूमिका दी गई। हालाँकि, बाबा साहेब ने जो मनुस्मृति जलाई थी, या पढ़ी थी, उसमे अंग्रेज़ मैक्समूलर द्वारा कई मनघडंत बातें भी जोड़ी गईं थी, जिससे अंबेडकर इस ग्रन्थ के प्रति गुस्सा हो गए। हालाँकि, फिर भी उनके खिलाफ कोई गुस्सा नहीं दिखा। 

हाल ही में समाजवादी पार्टी (सपा) के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थकों ने सरेआम रामचरितमानस की प्रतियां जलाई थी, जिसके बाद कुछ लोगों ने इसका विरोध जरूर किया था, किन्तु किसी की हत्या नहीं की और न ही किसी पर हमला किया। इसके विपरीत, सलवान मोमिका ने कुरान जलाई, और उनकी हत्या कर दी गई। यह एक सीधा उदाहरण है कि कुछ समुदाय आलोचना या विरोध को किस तरह लेते हैं, कुछ बहस और सुधार के लिए जगह छोड़ते हैं, जबकि कुछ हिंसक प्रतिक्रिया देते हैं।ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि असहिष्णुता, हिंसा और कट्टरता किस समुदाय में ज़्यादा है?

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