चिकन खाते ही शख्स को मार गया लकवा और फिर जो हुआ...
चिकन खाते ही शख्स को मार गया लकवा और फिर जो हुआ...
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लंदन से एक चौंकाने वाली घटना सामने आ रही है यहाँ एक व्यक्ति को चिकन खाते ही लकवा मार गया। उसे महीनों चिकित्सालय में रहना पड़ा, यहां तक क‍ि वह मरते मरते बचा। आइये बताते है पूरा मामला...

लंदन में रहने वाले 43 वर्षीय डेविड मिलर साइकिलिस्‍ट हैं तथा कई मैराथन में भाग ले चुके हैं। इसी कारण वह शरीर से भी वह बेहद फ‍िट और चुस्‍त दुरुस्‍त थे। उन्‍हें चिकन खाना बहुत पसंद है तथा अक्‍सर वह अपने पसंदीदा भारतीय रेस्‍टोरेंट से चिकन मंगाते रहते हैं। इस बार भी उन्‍होंने भुने हुए चिकन का ऑर्डर दिया पर खाने के कुछ ही क्षणों पश्चात् उन्‍हें चक्‍कर आने लगा। वह न‍ीचे गिर गए। उनके हाथों और पैरों में झुनझुनी होने लगी। ऐसा लगा कि कोई पिन या सुई चुभा रहा है। उन्‍हें तत्काल चिकित्सालय ले जाया गया। वहां पता चला कि फूड प्‍वाइजन‍िंग हो गई है। इससे वह एक दुर्लभ ऑटोइम्यून गुइलेन-बेरी सिंड्रोम की चपेट में आ गए हैं। सिंड्रोम के कारण मिलर ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहे थे। करवट लेना तो असंभव ही हो गया था। एक ही जगह पड़े रहते थे।

चिकित्सकों ने बताया कि गुइलेन-बेरी सिंड्रोम एक ऐसी दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल कंडीशन है जिसमें इम्यून सिस्टम स्वयं पर ही नकारात्मक तरीके से हावी हो जाता है। प्रतिरक्षा प्रणाली अपने तंत्रिका कोशिकाओं पर हमला करना आरम्भ कर देती है, उन्हें नुकसान पहुंचाती है। इस कंडीशन में शरीर में उपस्थित इम्यून सिस्टम तंत्रिका तंतुओं पर खुद के प्रोटेक्टिंग कोटिंग्स पर हमला करता है। आरम्भ में तो सांस लेने में परेशानी होती है लेकिन बाद में सिंड्रोम से ग्रसित लोगों के चेहरे की नसें कमजोर होने लगती हैं। हाथों और पैरों में तेज झुनझुनी होती है और आहिस्ता-आहिस्ता यह बीमारी पूरे शरीर में फैल जाती है। यदि इस बीमारी के सिम्टम्स को अनदेखा किया गया तो मरीज लकवाग्रस्त भी हो सकता है। सांसें रुक जाने के कारण मौत तक हो जाती है। आमतौर पर यह सिंड्रोम एक बैक्टीरियल या वायरल इंफेक्शन की वजह से होता है।

वही डेविड को चिकित्सकों ने बताया कि आमतौर पर अधपके चिकन में एक बैक्टीरिया पाया जाता है, जिससे गुइलेन-बेरी सिंड्रोम हो सकता है। उनकी भी हालत इसी कारण बिगड़ी। आईसीयू में एक सप्ताह तक उनका उपचार चला एवं लगभग ढाई महीने तक दर्दनाक गैस्ट्रोएंटेराइटिस के कारण हॉस्पिटल में भर्ती रहे। बाद में भी उनकी हालत बहुत नहीं सुधरी। वह टीवी भी नहीं दे पाते थे क्‍योंकि आंखें बंद होने लगती थीं। यहां तक कि महीनों अपनी पत्‍नी-बेटियों तक को नहीं पहचान पाए। जब डेविड को ढाई महीने पश्चात् हॉस्पिटल से छुट्टी मिली तब भी वह चलने-फिरने के लिए बैसाखियों और चलने की छड़ियों का उपयोग कर रहे थे। लंबे उपचार के पश्चात् फ‍िलहाल उनकी तबीयत में सुधार है तथा एक बार फ‍िर वह साइकिल मैराथन की तैयारी में जुटे हुए हैं।

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