महाकाल मन्दिर परिसर में विराजित है 42 देवताओं के प्रमुख मन्दिर, क्या आपको है इसकी जानकरी
महाकाल मन्दिर परिसर में विराजित है 42 देवताओं के प्रमुख मन्दिर, क्या आपको है इसकी जानकरी
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उज्जैन/ब्यूरो । द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक दक्षिणमुखी महाकाल मन्दिर अकेला एक ऐसा मन्दिर है, जिसके परिसर में 42 देवताओं के प्रमुख मन्दिर विराजमान हैं। श्री महाकाल का आंगन कई देवताओं का घर है। विश्व में संभवत श्री महाकालेश्वर मन्दिर अकेला एक ऐसा मन्दिर है, जिसके परिसर में 42 देवताओं के प्रमुख मन्दिर विराजित होने के साथ-साथ स्वयंभू भगवान महाकाल विराजते हैं और इन्हीं मन्दिर के ऊपर भगवान ओंकारेश्वर का मन्दिर और इसी मन्दिर के ऊपर बारह महीने में एक बार खुलने वाले मन्दिर में श्री नागचंद्रेश्वर भगवान विराजित हैं।

महाकाल परिसर लगभग कई एकड़ में फैला हुआ है। महाकाल मन्दिर जैसा विशाल परिसर संभवत: भारत में और किसी ज्योतिर्लिंग मन्दिर का नहीं है। श्री महाकाल पृथ्वी लोक के अधिपति हैं। उज्जैन पूरी दुनिया से इस अर्थ में अलग है कि आकाश में उज्जैन को जो मध्य स्थान प्राप्त है, वही धरती पर भी प्राप्त है। आकाश व धरती दोनों के केन्द्र बिन्दु पर उज्जैन स्थित है। महाकाल का अर्थ समय और मृत्यु के देवता दोनों रूप में लिया जाता है। इसी स्थान से पूरी पृथ्वी की कालगणना होती रही है। प्राचीन श्री महाकाल मन्दिर का पुनर्निर्माण लगभग ग्यारहवी शताब्दी में हुआ है। श्री महाकाल पृथ्वी के नाभि केन्द्र में स्थित दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग हैं जो दुनिया का एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है। तंत्र की दृष्टि से भी इस दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग का बड़ा महत्व है।

श्री महाकालेश्वर एक परन्तु रूप अनेक। विश्व में अकेले श्री महाकाल हैं जो विविध रूपों में भक्तों को दर्शन देते हैं। कभी प्राकृतिक रूप में तो कभी राजसी रूप में आभूषण धारण कर। भगवान महाकाल कभी भांग, कभी चन्दन और सूखे मेवे से तो कभी फल-फूल से श्रृंगारित होते हैं। विश्व में अकेले महाकाल हैं, जिनके इतने रूपों में दर्शन होते हैं। श्री महाकाल के आंगन में हनुमान, शिव, देवी सरस्वती, अवन्तिका, भद्रकाली, नवग्रह, शनि, राधाकृष्ण, गणेश के मन्दिरों से विभूषित महाकाल का यह परिसर आध्यात्मिक अनुभूति का पावन आंगन है।

श्री महाकाल मन्दिर परिसर में यूं तो छोटे-बड़े अनेकों देवी-देवताओं के मन्दिर हैं, परन्तु महाकाल परिसर में लगभग प्रमुख 42 मन्दिर स्थापित है, जो निम्नानुसार है- श्री लक्ष्मी नृसिंह मन्दिर जो मन्दिर परिसर के गलियारे में स्थित है। रिद्धि-सिद्धि गणेशजी का मन्दिर जो लक्ष्मी नृसिंह मन्दिर के ही आगे स्थित है। विट्ठल पंडरीनाथ मन्दिर है, जो मन्दिर के गलियारे में स्थित है। श्री राम दरबार मन्दिर गलियारे से कोटितीर्थ की ओर नीचे ऊतरने पर स्थित है। श्री अवन्तिका देवी का मन्दिर जो उज्जैन का एक प्राचीन नाम अवन्तिका है, इसका मन्दिर श्री राम दरबार मन्दिर के पीछे स्थापित है। श्री चन्द्रादीप्तेश्वर मन्दिर श्री राम दरबार मन्दिर से आगे बढ़ने पर बांये हाथ पर स्थित है। श्री मंगलनाथ का मन्दिर चन्द्रादीप्तेश्वर मन्दिर से आगे भूमिपुत्र मंगल शिवलिंग के रूप में यहां विराजमान है। श्री अन्नपूर्णा देवी का मन्दिर मंगलनाथ शिवलिंग से आगे स्थापित है। वाच्छायन गणपति महाकाल मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्वार (चांदीद्वार) के पास पूर्व दिशा में प्रतिमा स्थापित है। प्रवेश द्वार के गणेशजी की मूर्ति चांदी द्वार के ऊपर गणेश प्रतिमा विराजित है।

इसी प्रकार महाकाल मन्दिर परिसर में ही गर्भ गृह में विराजित ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान श्री महाकाल विराजमान है, जो चांदी द्वार से नीचे उतरने पर गर्भगृह स्थापित है। गर्भगृह में ही देवी पार्वती, श्री गणेश व कार्तिकेय की प्रतिमाएं हैं। गर्भगृह में ही अखण्ड दीप है। श्री ओंकारेश्वर महादेव मन्दिर है, जो श्री महाकालेश्वर के ठीक ऊपर स्थित है। श्री नागचन्द्रेश्वर महादेव का मन्दिर है जो ओंकारेश्वर महादेव के ऊपर यानी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर से तीसरी मंजिल पर स्थित है। इस मन्दिर के पट वर्ष में एक बार नागपंचमी को ही खुलते हैं। नागचन्द्रेश्वर प्रतिमा के रूप में भी दर्शन होते हैं, जो तीसरी मंजिल पर स्थापित हैं। सिद्धि विनायक मन्दिर महाकालेश्वर प्रांगण में ओंकारेश्वर मन्दिर के सामने उत्तर दिशा की ओर स्थित है। साक्षी गोपाल मन्दिर परिसर में सिद्धि विनायक के पास स्थित है संकटमोचन सिद्धदास हनुमान मन्दिर प्रांगण में उत्तर दिशा में स्थित है। स्वप्नेश्वर महादेव मन्दिर सिद्धदास हनुमान मन्दिर के सामने स्थापित है।

महाकाल परिसर में ही बृहस्पतेश्वर महादेव मन्दिर है, जो प्रांगण के उत्तर में स्वप्नेश्वर महादेव के समीप स्थित है। शिव की प्राचीन प्रतिमाएं त्रिविष्टेश्वर महादेव मन्दिर श्री महाकाल मन्दिर के पीछे स्थित है। मां भद्रकाले मन्दिर ओंकारेश्वर मन्दिर से सटे उत्तरी कक्ष में है। नवग्रह मन्दिर श्री महाकाल के निर्गम द्वार के पास स्थित है। इसी तरह महाकाल परिसर में मारूतिनन्दन हनुमान मन्दिर महाकाल परिसर के आग्नेय कोण में स्थित है। श्री राम मन्दिर मारूतिनन्दन मन्दिर के पीछे स्थापित है। श्री नीलकंठेश्वर मन्दिर महाकाल मन्दिर के निर्गम द्वार के पीछे स्थित है। मराठों का मन्दिर नीलकंठेश्वर महादेव के पास स्थित है। इसका निर्माण देवास के नरेश द्वारा कराया गया था। गोविन्देश्वर महादेव मन्दिर वृद्धकालेश्वर महादेव महाकाल मन्दिर के समीप स्थित है। सूर्यमुखी हनुमान मन्दिर कोटितीर्थ के प्रदक्षिणा मार्ग पर श्री महाकाल के प्रमुख द्वार के पास स्थित है। लक्ष्मीप्रदाता मोढ़ गणेश मन्दिर कोटितीर्थ की उत्तर दिशा में स्थित है। कोटेश्वर महादेव मन्दिर यह महाकाल के गण तथा कोटितीर्थ के अधिष्ठाता है। यह एक महत्वपूर्ण है। प्रदोष के दिन श्री महाकाल की सन्ध्यापूजा के पहले कोटेश्वर की पूजा की जाती है।

सप्तऋषि मन्दिर महाकाल परिसर के पीछे की ओर सप्तऋषियों के सात मन्दिर हैं। अनादिकल्पेश्वर महादेव मन्दिर सप्तऋषि मन्दिर के ठीक सामने है। श्री बालविजय मस्त हनुमान मन्दिर अनादिकल्पेश्वर महादेव के सामने स्थित है। यह एक चैतन्य देवस्थान माना जाता है। श्री ओंकारेश्वर महादेव का मन्दिर परिसर में ही स्थित है। श्री वृद्धकालेश्वर महाकाल (जूना महाकाल) श्री बाल हनुमान मन्दिर के पास स्थित है। पवित्र कोटितीर्थ महाकाल के आंगन का जलतीर्थ है। महाभारत में इस तीर्थ का उल्लेख है। कोटितीर्थ के पवित्र जल से नित्य भगवान महाकाल का अभिषेक किया जाता है।

भगवान श्री महाकाल की प्रतिदिन पांच आरती होती है। प्रतिदिन प्रात: भस्म आरती होती है, जिसका समय चार से छह बजे तक होता है। भस्म आरती का समय केवल श्रावण मास में परिवर्तन किया जाता है। इसी तरह महाशिवरात्रि पर्व पर वर्ष में एक बार भस्म आरती दोपहर 12 बजे होती है। विश्वभर में एकमात्र श्री महाकाल हैं, जिनकी प्रात: चार से छह बजे तक वैदिक मंत्रों, स्त्रोतपाठ, वाद्ययंत्रों, शंख, डमरू, घंटी, घड़ियालों के साथ भस्म आरती होती है। दद्योदय आरती प्रात: सात बजे से होती है। इस आरती में समय पर परिवर्तन होता रहता है। तीसरी आरती प्रात: दस बजे से नैवेद्य आरती होती है। शाम पांच बजे गर्भगृह में बाबा महाकाल का जलाभिषेक बन्द रहता है और इस समय पूजन-श्रृंगार किया जाता है। इसके बाद शाम को सन्ध्या आरती सात बजे से की जाती है। इसके बाद मन्दिर में शयन आरती रात्रि साढ़े दस बजे से होती है और इसके बाद गर्भगृह के पट बन्द हो जाते हैं, जो अगले दिन प्रात: चार बजे खुलते हैं। आरतियों में समय-समय पर परिवर्तन भी होता रहता है।

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