बी एस येदियुरप्पा, कई उतार-चढ़ाव और 3 बार सीएम
बी एस येदियुरप्पा, कई उतार-चढ़ाव और 3 बार सीएम
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बंगलुरु: कर्नाटक में बीजेपी से सीएम पद के लिए चुनावी रण में उतरे बी एस येदियुरप्पा ने आज मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है, येदियुरप्पा ने आज तीसरी बार मुख्यमंत्री पद पर बैठे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि येदियुरप्पा यहाँ तक कैसे पहुंचे ? सिर्फ लिंगायत नेता कहकर येदियुरप्पा को खारिज करना आसान नहीं है. कर्नाटक के मांड्या जिले के बुकानाकेरे में सिद्धलिंगप्पा और पुत्तथयम्मा के घर 27 फरवरी 1943 को जन्मे बुकंकरे सिद्दालिंगप्पा येदियुरप्पा ने चार साल की उम्र में अपनी मां को खो दिया था. चावल मिल के क्लर्क से जमीनी किसान नेता और फिलहाल कर्नाटक में लिंगायतों के सबसे बड़े नेता येदियुरप्पा कई मुश्किलों से गुजर कर यहां तक पहुंचे हैं. 

अपने पोलिटिकल करियर की शुरुआत उन्होंने 1972 में शिकारीपुरा तालुका के जनसंघ अध्यक्ष के रूप में की थी, इमरजेंसी के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. बेल्लारी और शिमोगा की जेल से जब वे निकले तब तक उन्हें  इलाके के किसान नेता के रूप में जाना जाने लगा था. साल 1977 में जनता पार्टी के सचिव पद पर काबिज होने के साथ ही राजनीति में उनका कद और बढ़ गया. येदियुरप्पा 1983 में पहली बार शिकारपुर से विधायक चुने गए और फिर छह बार यहां से जीत हासिल की, 1988 में ही उन्हें पहली बार बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था.  1994 के विधानसभा चुनावों में हार के बाद येदियुरप्पा को असेंबली में विपक्ष का नेता बना दिया गया. 2003 

2004 में उनकी पत्नी की रहस्यमयी तरीके से कुँए में गिरने से मौत हो गई थी, जिसके बाद उनपर जमीन घोटाले, अवैध खनन घोटाले, बेटों को भूमि आवंटित करने के आरोपों लगने से विवाद में आ गए. पांच फरवरी 2011 को उन्होंने अपनी संपत्ति सार्वजनिक की और और कांग्रेस को चेतावनी दी कि वह उनके पास 'काले धन' की बात साबित करके दिखाए. 2007 में येदियुरप्पा पहली बार मुख्यमंत्री बने, जेडीएस और भाजपा के बीच हुए एक अनुबंध के तहत, जिसमे पहले 20 महीने कुमारस्वामी और बाद के 20 महीने येदियुरप्पा मुख्यमंत्री रहेंगे. 2008 में उन्होंने पहली बार निर्दलीय और विपक्ष के विधायकों को खरीदकर जबरदस्त बहुमत जुटाया और मुख्यमंत्री बने. आज उन्होंने तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है.  कर्नाटक की सबसे मजबूत जाति लिंगायत के हिस्से 21 प्रतिशत वोट है. कहा जाता है कि इसका बड़ा हिस्सा आज भी येदियुरप्पा के इशारों पर वोट करता है.  

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