Movie Review : एक्टिंग के मामले में तगड़ी रही 'द फ़क़ीर ऑफ़ वेनिस'
Movie Review : एक्टिंग के मामले में तगड़ी रही 'द फ़क़ीर ऑफ़ वेनिस'
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द फकीर ऑफ वेनिस मूवी रिव्यू : निर्देशक आनंद सुरापुर की फिल्म 'द फकीर ऑफ वेनिस' करीब 10 साल से विवाद झेल रही है, कुछ ना कुछो ही रहा था इस फिल्म के साथ जिसके कारण इसे रिलीज़ नहीं किया जा रहा था. लेकिन आखिर कर ये फिल्म रिलीज़ हो ही गई. आज ये फिल्म लगी है तो जानते हैं क्या रहा है इसका पब्लिक रिव्यु.

कलाकार- फरहान अख्तर,अन्नू कपूर 
निर्देशक- आनंद सुरापुर 
मूवी टाइप- ड्रामा 
अवधि- 1 घंटा 27 मिनट
रेटिंग- 2.5 / 5 

कहानी : फिल्म शुरू होती है आदी (फरहान अख्तर) से, जो एक जुगाड़ू प्रॉडक्शन असिस्टेंट है और वह अनोखे प्रॉडक्शन करता है. इसी सिलसिले में उसे वेनिस के म्यूजियम में एक ऐसे योगी को लाने का असाइनमेंट मिलता है, जो अपने सिर को रेत के अंदर गाड़कर और पैरों को बाहर रखकर साधना में लीन हो सके. इसी की तलाश में वो निकल जाता है. कुंभ से लेकर काशी तक खोजनके बाद उसे वह साधु, सत्तार (अन्नू कपूर) के रूप में मुंबई के जुहू बीच पर मिलता है. लेकिन इसमें ट्विस्ट तब आता है जब ये पता चलता है कि वो एक साडू नहीं है. वह कोई और ही होता है और इसे देखकर आपको भी मज़ा आने वाला है. 

लेकिन ये वही शख्स है जो रेत के अंदर दफन होकर कुछ घंटों के लिए अपनी सांस रोककर रख सकता है. मोटी रकम के चलते आदी सत्तार को आध्यात्मिक योगी बनाकर वेनिस ले जाता है. इंडिया से वेनिस के सफर में आदी और सत्तार के साथ बहुत कुछ घटता है और इस सिलसिले में कड़वे सच के साथ-साथ ब्लैक ह्यूमर भी पैदा होता है, जो दर्शकों को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है. 

निर्देशन : निर्देशक के रूप में आनंद सुरापुर का ट्रीटमेंट और अप्रोच फ्रेश है. कहानी में कुछ अलग भी है और उन्होंने किरदारों को कुछ इस अंदाज में बुना है कि आप उनसे रिलेट करने लगते हैं. महज एक घंटा 27 मिनट की इस फिल्म की खासियत है, इसके बावजूद अगर स्क्रीनप्ले चुस्त होता और कैमरावर्क शार्प होता, तो फिल्म और ज्यादा सधी हुई हो सकती थी. 

क्यों ना देखें : फिल्म की शुरुआत धीमी है, मगर इंटरवल के बाद फिल्म गति पकड़ती है. क्लाइमैक्स को और बेहतर बनाया जा सकता था. फिल्म के कई हिस्से अंग्रेजी में हैं, उन्हें अगर हिंदी सबटाइटल दिया जाता, तो अच्छा होता. 

एक्टिंग : फरहान अख्तर ने टिपिकल अरबन लड़के के रोल को बखूबी जिया है. फिल्म में उनका किरदार बेहद स्वार्थी और मतलबी दिखाया गया है, जिसे अदा करने में फरहान पूरी तरह से कामयाब रहे हैं. वहीं सत्तार के चरित्र में अन्नू कपूर ने बेहतरीन अभिनय किया है. सत्तार के रूप में उनका भावशून्य अंदाज और शराब के लती के तौर पर गिड़गिड़ानेवाले एक्सप्रेशंस सीन्स में जान डाल देते हैं.  

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